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Showing posts from 2010

........ ल जीताना हे हमर पारा में दारू दुकान खुलाना हे...,

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हमारे शहर के गली नाली की साफ सफाई के लिऐ होने वाले निकाय चुनाव में ........ ल जीताना हे हमर पारा में दारू दुकान खुलाना हे..., इस तरह के नारे आम हैं, शहर में इस स्तडर के चुनाव का भी काफी शोर हैं तमाम मंत्री संत्री भी खीस निपोरे हाथ पसारे घूम रहे हैं , प्रदेश के मुखिया भी चेता कर चले गऐ कि मुझे, मेरे दल के पार्षद और महापौर मिले तब ही आपके लिऐ विकास करूगा नही तो ................... मेरे व्य वसायिक क्षेत्र में चुनावी आहट के साथ ही गहमागहमी का शबाब महसूस होने लगा था, हर दो मिनट में ढोल नगाडो के साथ कुछ लोगो का जथ्थाे झण्डाह लहराते चिल्लामते घूम रहा हैं, जगह जगह हाथ जोडे प्रत्या शीयो के बडे बडे कटआउट लगे हैं, मीडिया के दफतरो में भैयया पान , गुटका, शाम को बैठते हैं, कोर्इ बतला रहा , कोई जतला रहा तो कोई फुस्स फुसा रहा हैं,फलैक्सट डिजार्इन बनाने वाले के यहां लोग लाईन लगाऐ खडे हैं फलैक्स ,आपसेट,लैडल मशीने तो रात दिन चल चल कर हांफ रही हैं,बच्चेह बच्चेक हाथो में हैण्डल बिल लिऐ बाटते हुऐ घुम रहे है, राजनीति के दलाल पौव्वाइ, पुडी, पैसा और पैट्रोल के हिसाब बनाने में मस्त हैं अर्थात भीडतंत्र का महाकुभ

सौन्दकर्य का नकाब

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मुंह में दांत नही, पेट में आंत नही, फिल्मर देख कर बुढा कुछ ज्यानदा ही गरम हो गया हैं, इन जुमलो के साथ लतियाऐ गऐ बुढे की आंख से चश्माट व सायकल से सीट अलग हो कर बिखर गऐ थे, स्था‍नीय सिनेमा हाल के सामने घटी इस घटना कुछ लोगो ने बीच बचाव कर बुढे को बचाते हुऐ बुढे से लडकी को घूरने का कारण पुछा तो जानकर हैरानी हुर्इ की दरअसल बुढे को यह शक हो गया था कि टाकीज से नकाबपोश युवा जोडी में नवयुवती उसकी लडकी थी जो घर से स्कू ल के लिऐ निकली थी इससे पहले की बुढा कुछ कह पाता, लडका बुढे से घूरने का आरोप लगाते हुऐ उलझा पडा,, इसी तारतम्यी में कुछ अतिसंवेदनशील सामाजिक मर्यादा के ठेकेदार किस्मन के प्राणीयो ने भी बुढे पर दो दो हाथ अजमा हुऐ पटक दिया,लडकी के साथ साथ् लडका भी मौके से गायब हो गया, इसलिऐ सच्चाढई तो पता नही चल पाई पर नकाब का खमियाजा बुढे बाप को मिल गया था, सुर्य किरणो में मौजूद अल्ट्रा वायलेट से व फिर शहरो के धूल से बचने के नाम युवा पीढी में नकाब का चलन आज अपने पुरे शबाब पर हैं और और इस नकाब की आड में चल रहा व्याधभिचार और अपराध का ताडव भी उसी तेजी से अपना रंग दिखा बढ रहा हैं, सडक पर चलते कई बार ऐ

वसूली

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पिछले दिनो सामान्य डाक से पुलिस विभाग का एक पत्र मिला विगत 8 नवंम्बऐर को आपने सुपेला चौक पर यातायात सिग्न ल सूट किया, इसलिऐ यातायात कार्यालय में उपस्थित होकर दो सौ रूपये बतौर जुर्माना जमा करे, मुझे काफी आश्चार्य हुआ क्योाकी मैं ज्याहदातर कार से ही आना जाना करता हॅू , बाइक बिना हेलमेट, आवश्यहक पेपर और 40 से ज्यातदा की स्पीरड पर चलाता नही हूं ,खैर संभव हैं कि स्टा फ में किसी ने मेरी बाइक इस्तोमाल करते हुऐ ऐसा दुस्सातहस किया हो, मैं यातायात कार्यालय चले गया फाइन पटाने पर हवलदार ने दो सौ बीस रूपये मांगे मैंने दो सौ रूपये बतौर लिखे होने की बात की तो साहब कुछ झल्ला ऐ और डाक खर्च की बात करने लगे , मैंने केवल दस रूपये चिल्ल हर होने की बात कह कर लिफाफे पर लगी पांच रूपये की टिकट दिखाई , जिसे देखकर बगल में सिगरेट का कस मारकर अपनी थकान उतार रहा सिपाही हरकत में आ गया और कहने लगा साहब जरूरी नही हैं, आप केवल दो सौ रूपये ही दे दीजिऐ, दरअसल यहां सुबह से बैठे बैठे कमर दर्द दे देती हैं, और आदत खडे रहने की हैं चाय नाश्ता भी निकलता रहता हैं, अब तो शाम को घर सब्जीे ले जाने का जुगाड नही जम रहा हैं हमने दस रू

आवाज दे कहां हैं..........

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सत्त र के दशक में मनोरंजन का सबसे सुलभ साधन रेडियो ही था, जो समय समय पर सही और रोचक,ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वलसनीय समाचारो का माध्य म भी था, रेडियो सिलोन, विविध भारती, आल इण्डिया रेडियो, आकाशवाणी का दिल्लीस केन्द्र , क्ष्ेेत्रिय प्रसारण केन्द्रर में आकाशवाणी का रायपुर केन्द्रं, ये आकाशवाणी हैं सुबह के आठ बे हैं अव आप देवकी नंदन पाण्डेल से समाचार सुनिये इतनी शब्दआ ही पुरे देश को गंभीरता में जकड लेते थे तमाम लोग अपनी घडी का समय मिलाकर चाबी भरने लगते थे उस दौर में प्रसारित समाचार विश्व सनीयता की कसौटी पर सौ फिसदी सही होने के साथ उनकी अपनी एक गरिमा होती थी, इसी तरह फिल्मी गीतो का के तमाम फरमाईशी कार्यक्रमो और उनसे जुडे देश भर के श्रोता संघ, विविध भारती का जय माला शशी भूष्ण शर्मा आकाशवाणी रायपुर का आपके मीत ये गीत कल्पाना यादव, किशन गंगेले,लाल राम कुमार सिंग मिर्जा मसूद , लोकगीत आधारित सुर सिंगार प्रभा डमोर युवाओ के लिऐ युववाणी कमल शर्मा किसानो के लिऐ चौपाल बरसाती भैयया इसी तरह के रेडियो सिलोन के शशी व पदमीनी परेरा यहां के लुभावने कार्यक्रमो में आप ही के गीत, भुले बिसरे गीत इसमे सहगल

हाय रे मूर्ति पूजा

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आज सुबह बेड टी के अखबार में बैनर के साथ एक मंजे पत्रकार ने अपनी दंगाइ्र भाषा में पुरे शहर में धार्मिक उन्माीद जैसी स्थिती का जिक्र किया था जिसकी वजह शहर की एक गली के तिराहे पर लगी एक मूर्ति को किसी आदमी / जानवर द्वारा खण्डित कर दिया गया था , अनुयायी सडको पर निकल उतेजक बयानबाजी कर रहे थे, पुलिस प्रशासन का पुतला जला कर कुछ गमछाधारी गरिया रहे थे, कुछेक सडक पर चक्काा जाम कर अपनी ताकत दिखा रहे थे, पुरा तंत्र अस्त्‍ व्ययस्तह था, समाचार पढकर पिछले दिनो घर के पास खाली पडे मैदान में खडे किये गऐ एक छोटे बांस जिस पर लाल कपडे में लिपटे लटके नारियल और उसके नीचे रखे एक बेआकार बजरंगी रंग से पेन्टु किया गया बोल्डेर दिमाग को झकझोरने लगा.......... दरअसल मैं बचपन ( 35 साल पहले ) से ही नेशनल हाइवे 6 के बगल में लगे उस मैदान को देख रहा था तब न तो विशेष्‍ क्षैत्र विकास प्राधिकरण अता पता था और न ही नगर निगम का, इस क्षेत्र के लिऐ स्वाथस्थो शिक्षा रोजगार सडक पानी जैसी तमाम बुनियादी आवश्यपकताऐ स्वीयं जुगाड से चलती थी न प्रशासन का कोई दायित्व बनता था और न हमें अपने कोई अधिकार समझ आते थे , तमाम जगह खाली ही थी

कौन/कैसा गरीब............?

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एक मेहनती व्‍यापारी अपने व्‍यापार का बोझा लिऐ रोज आते जाते एक नौजवान को कई दिनो से पेड के नीचे आराम करते देख रहा था, एक दिन सुसताने के नाम पर वह भी उसी के पास बैठ कर बतियाने लगा, यह जानकर कि नौजवान कुछ काम ही नही करता हैं, वह आदतन उसे समझाने लगा मेहनत ईमानदारी की बाते नौजवान को उबाउ लगी तो उसने टोक दिया की आपकी यह लम्‍बी लम्‍बी बाते आसान तो हैं नही और इनसे मुझे हासिल क्‍या होगा....? व्‍यापारी ने शांति व आराम का जीवन मिलने की बात की तो नौजवान तपाक से बोल पडा . आराम से पेड के नीचे स्‍वस्‍थ हवा में बेफ्रिक पडा हूं, इससे तो अच्‍छा नही होगा,     आज पुरे अधिकार के साथ सब कुछ समाज से नोंच लेना देश में बढती बेबसी और गरीबी का मनोविज्ञान भी ऐसा ही बन रहा हैं जिसके साथ वोट बैंक की गंदी राजनीति मिल कर ऐतिहासिक आधार पर धार्मिक और जातिय से भी ज्‍यादा भयावह रूप से समाज में आर्थिक विषमता की खाई खोद रही हैं, जबकी दूरस्‍थ व काफी अन्‍दरूनी और अभाव में गुम हो रही जिन्‍दगीयो तक न तो सरकार पहुच पा रही हैं न विकास, और न ही किसी को इसकी चिन्‍ता हैं,संसद में बैठने वाले सयानो को ये बात समझ में आ

वाशबेशिन बनाम मेरा शहर

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हमारे नऐ घर के प्रवेश उत्‍सव की रंगोली भी नही हटी थी कि विकास प्राधिकरण के लोगो ने न घर के दरवाजे पर ही नाली के नाम पर भारी गउडा खोद दिया,पदस्‍‍थ इन्‍जीनियर से बात की तो उन्‍होने पुरे नियम गिना डाले साथ ही सरकारी मजबूरी भी जाहिर करते हुऐ अन्‍त में एहसान जताते हुऐ पुनं पुरा बनवा भी दिया, फिर तो साहब से नियमित हाय हैलो भी होने लगी, एक दिन साहब कुछ कागज पत्‍तर ले कर आऐ और औपचारिकता के तहत सन्‍तोषस्‍पद कार्यसम्‍पन्‍न के प्रमाण पत्र में दस्‍तखत करने को कहने लगे हमने साहब के साथ चाय पीते पीते पढना शुरू किया नाली की लम्‍बाई, गहराई, पुलिया की संख्‍या, गुणवत्‍ता सब गोलमाल साफ दिख रहा था, काफी भष्‍ट्राचार की बू आ रही थी,, हम एहसान में दबे कुछ टोका टिप्‍पणी करते हुऐ दस्‍तखत कर ही दिये, यही साहब लगभग सत्रह साल बाद कल शाम होम डेकोर के यहां मिल गऐ, समय के साथ साहब में बडे अफसरी का रूतबा झलक रहा था साहब की सरकारी गाडी मयचालक बाहर खडी थी, बातचीत से पता चला साहब अपने घर के लिऐ वाशबेशिन लेने आऐ हैं, पानी के अलावा ठंडा भी पी चुके हैं पर वाशबेशिन नही जम रहा हैं, ,साईज डिजाईन, रंग, गहराई, ब्राड,दाम और फ

पुलिस .... मजबूती या मजबूरी

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पिछले दिनो हमारे एक मित्र का बरामंदे में रखा गैस सिलेण्‍डर चोरी हो गया,स्‍वाभविक था, कि थाने में रिर्पोट लिखाई जाय, मित्र के साथ मैं भी थाने चला गया जहां पहुचते ही कुछ असहज महसूस होने लगा, गलियारेनुमा माहौल में आपस में उलझे चार पांच टेबल जिसके साथ लगी कुर्सीयो पर सरकारी बाबु किस्‍म के तीन वर्दीधारी लोग बैठे, एक आदमी प्रार्थी की शक्‍ल में भी खडा था, दिवार पर महापुरूषो की फोटोमय मकडी के जाल लटकी थी , खिडकी और चौखट पान गुटके से दागदार थी, एक आदमी आदमी बगल में कैमरा और मुंह में गुटका दबाऐ समाज शास्‍त्र की बातें कर रहा था, संभवत किसी समाचार की जुगत भीडा पत्रकार था,जेलनुमा दरवाजे में भी दो लोग झांक रहे थे, वेलकम स्‍माईल की कोई गुजाईश नही थी, हमने दफतरी अभिवादन की पंरम्‍परा में औपचारिक मुस्‍कान तो बखेरी पर कोई रिस्‍पांस दिखा नही, उनकी बाते और हमारा खडा रहना दोनो ही अपनी अपनी जगह अटपटा महसूस हो रहा था, हमारे मित्र को शाम की ओ. पी. डी. में जाना था इसलिऐ मुंशी साहब को टोक ही दिया, सर एक कम्‍पलेशन लिखानी थी, शायद बात किसी को भी हजम नही हुई माहौल में कुछ कडवाहट सी घुलती प्रतीत हुई, एक ने कुछ उस

नेता जी का मजगा

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पिछले दिनो सुबह सुबह जब आफिस जाने की जल्‍दबाजी थी तभी पडोस की बुजूर्ग आण्‍टी ने सडक पार चौक के मेडिकल से ब्‍लड प्रेशर की दवाई लाकर देने का आग्रह कर दिया , दवाई जरूरी थी और कोई विकल्‍प भी नही था हम बाईक से निकले तो प्राय खाली रहने वाले चौक पर भी जबरजस्‍त जाम लगा था भारी पुलिस इंतजाम, एक महिला पुलिस अधिकारी एक हाथ में वाकी टाकी दूसरे हा‍थ में मोबाईल लऐ मंद मंद मुस्‍कान के साथ किसी से बतियाते हुऐ सडक के शहनशाह के समान बीच चौक में खडी थी, आस पास कुछ पटिया छाप नेता हाथ में मोगरे की माला लिये खीस निपोरे खडे थे सडक के बीचो बीच एक लम्‍बी पटाखे की लडी बिछी हुई थी जिसके एक सिरे पर एक माचिस बाज तैनात था ढोल मास्टर नशे में टुन्‍न ढोल का शोर मचाऐ हुऐ था, स्‍कूली बसो को भी सडक से किनारे लगा दिया गया था ठूसे पडे बेचारे बच्‍चे भी छटपटा रहे थे, इस बीच में ही फंसी एम्‍बूलेंस की लगातार दम तोडती बैटरी भी उसके सायरन को हिचकियो में बदलती प्रतीत हो रही थी, मेरे जैसे सेकडो लोग, डियूटी जाने वालो को गेट बन्‍द होने व हाजिरी कटने का डर सता रहा था हर तरफ बैचैनी साफ दिख रही थी खडे लोगो की भारी भीड गवाह थी की जाम ल

बैग/झोला छाप डाक्‍टर

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बैग/झोला छाप डाक्‍टर देश की तमाम सरकारी योजनाओ की बात करते हुऐ जिस तरह जुबान गंदी महसूस होती हैं वही हालात अब बुनियादी बातो पर भी होने लगी हैं, गुजरात के सरकारी अस्‍पताल में दो नवजात इन्‍कुबेटर शारीरिक तापमान बनाऐ रखने वाले उपकरण में जलकर राख हो गऐ, हाल में ही चार बच्‍चे सरकारी अस्‍पताल में वैक्‍सीन लगाते ही ठंडे पड गऐ, इन मासूम नादान बच्‍चो के परिवारो के अलावा सब भूल गऐ, पैरा मेडिकल स्‍टाफ को कोस सरकार ही नही हम आप सब चुप ....ये तो रोज की बात हैं पर हम तो बेहतर इलाज ले ही रहे है, बेहतर अर्थात पांच सितारा...... पिछले दिनो हमारे औसत दर्जे के शहर में स्‍वाईन फलू नाम की मीडियाई चिल्‍लपौ मच गई, शहर के एक मीडियापरस्‍त खाटी किस्‍म के पुराने दाउ व राजनैतिक गिरोहबंदी से चल रहे अस्‍पताल में मरीज की भर्ती होने से लेकर इलाज प्रक्रिया को मीडिया द्वारा आवश्‍यक अनावश्‍यक तामझाम के साथ नियमो के खिलाफ मय फोटो दिखाया पढाया जाने लगा ,इलाज से जुडे मरीज को मिल रहे स्‍वास्‍थ लाभ की राम कथा सुनाते रहे और मरीज राम को प्‍यारा हो गया, अब इलाज से हीरो बन रहे डाक्‍टर / अस्‍पताल ही नही पुरी सरकार कटघरे में

मिलावट भष्‍टाचार पर संगोष्‍ठी

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खर्च करके ही इन्‍सान कमाना सीखता है, और इसके लिऐ मेहनत जरूरी हैं जो देश और समाज दोनो के लिऐ आवश्‍यक हैं सरकार का काम बुनियादी आवश्‍यकताओ को सुचारू व सुनिश्चित करना हैं वोट बैंक के नाम पर सरकारी लंगर चलाना मक्‍कारी को जन्‍म देता हैं, आज जिस वेतन पर पिता कार्यमुक्‍त हो रहा हैं बेटा उसी वेतन पर नौकरी की शुरूवात कर रहा हैं इसलिऐ मंहगाई की बाते बेमानी हैं, उपरोक्‍त विचार मुक्‍तकंठ साहित्‍य समिति भिलाई द्वारा खुर्सीपार में आयोजित मिलावट, मंहगाई और मैं विषय पर संवाद गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुऐ समालोचक सतीश चौहान ने कहे, मुख्‍य अतिथि अरूण अग्रवाल के अनुसार विवेक और संस्‍कार के उपयोग से ही इन समस्‍याओ पर अंकुश लगाया जा सकता हैं , गोष्‍ठी में डा रविन्‍द्र पाटिल ने मिलावट के लिऐ सरकार की इच्‍छाशक्ति पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाया और परीक्षण प्रयोगशाला की कमी को मुख्‍य कारण बताया,इसी तारतम्‍य में डी एन यादव ने मंहगाई को निरन्‍तर चलने वाली प्रक्रिया बताया, मिलावट पर मीडिया की दरोगागिरी को सराहनीय बताया, उमेश दीक्षित के विचार में मंहगाइ को कोस कर लोग राजनीति कर रहे हैं, मिलावट करने वालो में डर न होना चि

इमोशनल अत्‍याचार

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जब हम छोटे थे तब डमरू वाले मदारी और उनके जमूरे आते थे,जो बंदर, बंदरिया व भालू की उछलकूद के साथ इनकी शादी भी कराते थे बंदरिया के नखरे ,प्‍यार और रूठ कर मायके जाने की अदा, भालू का दुल्‍हा बन कर मटकना खूब हंसाता था, ऐसा ही कुछ कुछ होता था ढोल और थाली बजाते हुऐ रस्‍सी पर चलने वालो और छोटे से रिंग से अपने शरीर को तोड मरोड कर निकालने वाले बच्‍चो के खेल में, जिसमें भी मेहनत व कलाबाजी थी,मंनोरंजन भी अच्‍छा होता था, रूपया, दो रूपया, चांवल आटा देकर लोग खुश हो लेते थे पर बात तब बिगडती थी इन मदारी किस्‍म के लोगो ,द्वारा जब हम जैसे तमाशबीनो में प्रबल असुरक्षा के भय को जगा कर वैज्ञानिक प्रमाणिकताहीन ताबीज बेचने का प्रयास होता था और यही इमोशनल अत्‍याचार की शुरूवात हैं.... ऐसा ही कुछ कर रहे हैं हमारे देश के बाबा किस्‍म के लोग.......निरोग के लिऐ योग तो ठीक हैं,पर संत के चोले में चल रहा जडी बूटी का बडा कारर्पोरेट बिजनेश पुरे देश में उसके आउटलेट खोल कर झोला छाप लोगो की कलम से प्रमाणिकताहीन जडी बूटी, सब्‍जी भाजी,नैतिकता और डाक्‍टरेट की किताबो के आकर्षक पैकट उचे दाम पर बिकवाना ये भी तो हैं इमोशनल अत

सरकार

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सरकार रमुआ के यहां से थाली बजने की आवाज आई, पुर्व निर्धारित पांचवी संतान के आने का संकेत, टुटी सायकल पर फटी बण्‍डी पहने मट्रटी तेल बेचने वाला रमुआ खुशी से मदमस्‍त हो रहा हैं स्‍वास्‍थ, शिक्षा,रोजगार के लिऐ नही सिर्फ पौव्‍वा के लिऐ वोट देता हैं, रमुआ, देश की सरकार को, अधेड कुपोषण का शिकार, रामकली रमुआ की पत्‍नी अथवा रमुआ की सरकार जो दे चुकी हैं चार साल में पांचवी संतान अर्थात बुढापे का पांचवा सहारा इसलिऐ खुशी से मदमस्‍त हो रहा हैं..........

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार हर दफतर का शिष्‍टाचार बन बैठा हैं भ्रष्टाचार कहता हमसे हाथ मिलाओ, कर देंगें तुम्‍हारा बैडा पार , मैं भी इतराया ,अपने आप को कर्मयोगी बतालाया, पर वो भी कहां था मानने वाला, उसने पुरे प्रजातंत्र को ही कुछ इस तरह खंगाला बार्फोस,ताबूत,तेलगी,तहलका,हवाला सब गिना डाला, बडे गर्व से उसने कहा भष्‍ट्र नेता जनता न संभाल पाऐगे, बन जाओ हमारे ओ हरिशचंद, तुम्‍हारे बच्‍चे भी पल जाऐगें, नेता, अ‍‍भिनेता, पुलिस, कानून,हर कोई साथ मेरे नाचता हैं पंडित कुरान तो मुल्‍ला रामायण बांचता हैं, अवसरवाद् के दौर में भष्‍ट्रचार का ही जूनून हैं जनतंत्र के शरीर में भष्‍ट्रचार का ही खून हैं मेरा तो स्‍वाभिमान खौल रहा था भष्‍ट्राचार सर चढ के बोल रहा था, मुझे कोई तर्क सूझ न रहा था उसे तो गांधी ,बुद्ध भी नही बूझ रहा था हम दोनो के बीच एक अपाहिज मिल गया जिसे देख भष्‍ट्राचार भी हिल गया तिहाड से था आया और अपने को भष्‍ट्राचार का भाई बतलाया, बीमार चल रहा था दवाई की मिलावट ने तो और बीमार बनाया, अब तो भी भष्‍ट्राचार कतराने लगा,उसे भी अपना अपन अपाहिज भविष्‍य नजर आने लगा,,,,,,,, मैंने

कमीशन की बीमारी

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पिछले दिनो सेल द्वारा संचालित प्रदेश के सबसे बडे अर्थात 1000 बिस्‍तर के और सुविधासम्‍पन्‍न आलिशान अस्‍पताल के आपात कक्ष के पास से गुजर रहा था कि एक बदहवाश ग्रामीण ने मुझे रोकते हुऐ एक पर्ची दिखाते हुऐ पता पुछा, एक प्राईवेट और अपेक्षाक्रत स्‍तरहीन अस्‍पताल का पता था जहां असानी से पहुचना भी मुश्किल था, मैने पता बताने से पहले पुछ ही लिया क्‍यों..., उसने छाती से लगाऐ छोटे से बच्‍चे को दिखाते हुऐ बताया कि खेलते बच्‍चे को कोई स्‍कूटर से मार कर चले गया चालीस किलोमीटर दूर गांव से लाऐ हैं, डाक्‍टर हाथ नही लगा के देखने के बजाय पर्ची लिख दिया हैं यहां जाओ,मैंने बच्‍चे को देखा   शरीर अकड रहा था, संभवत् दिमाग की किसी नस पर चोट से हो रहा रिसाव का खून कही जम रहा था, और इससे दिमाग सुन्‍न हो रहा था ऐसे में ये आवश्‍यक था, बच्‍चे को तुरंत Anticoagulant like heparin देकर बचाव किया जा सकता हैं, मैंने बेहतर समझा की उपस्थित चिकित्‍सक से ही बात की जाय तो जूनियर डाक्‍टर जी ने पहले तो मुझे मेरी औकात बताई,फिर उस ग्रामीण पर नेतागिरी करने का आरोप लगाते हुऐ बच्‍चे के प्रति अशोभनीय टिप्‍पणी करने लगे , तब तक मैं काफ

घूटन या फिर दो तंमाचे

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दो तंमाचे घूटन या फिर दो तंमाचे पिछले दिनो देश के एक बडे बैंक समूह के दफतर जाना हुआ ,दरअसल एक परिचित की अचानक मौत हो गई थी, जिनकी श्रीमति पहले ही गुजर चुकी थी , पिताजी के पैसे तो थे पर देश के सबसे बडे दस हजार शाखाऐ , 8500 ए टी एम वाले बैंक के खाते में ,जिसके लिऐ बच्‍चीया परेशान हो रही थी रोज तमाम दस्‍तावेज बनवा कर बैंक जाती कोई न कोई कमी बताकर बैंक लौटा देता ,मई जून की गर्मी में रोज रोज की भाग भागदोड कर अपने पिता और स्‍वंय अपने तमाम दस्‍तावेजो साथ ही इस बैंक का खाताधारी पहचानकर्ता और उसके तमाम दस्‍तावेज जुटाने के बावजूद ये परेशान ये लोग हार कर मेरे पास पहुचे मुझसे जमानत लेने की बात कही, मैं इनके पिताजी को व्‍यक्‍तीगत तौर पर जानता था और इसी बैंक में भी मेरा लम्‍बे समय से स्‍वस्‍थ सम्‍बंध था,स्‍वभाविक तौर पर मैंने तुरंत जमानतदार के तौर पर अपना अकांउण्‍ट नम्‍बर के साथ हस्‍ताक्षर कर दिये, कुछ दिनो बाद ,मुझे फिर उनका फोन आया कि आप को बैंक में बुला रहे हैं, मैं बच्‍चीयो के प्रति स्‍वाभाविक हमदर्दी पर बैंक का इस तरह बुलाना ठीक नही लगा, खैर मैं, लुभावने कारर्पोरेट चकाचौंध के ए.सी.बैंक न

लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी

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पिछले दि नो एक लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी के साथ बैठक हो गई , समाज, व्‍यवस्‍था, राजनीति, प्रशासन,शिक्षा, चिकित्‍सा,व्‍यापार,उद्वोग आदि आदि पर इनकी भावुक टिप्‍पणीयो में मुझे लगातार अराजकता की आहट सुनाई पड रही थी, तमाम बाते ढोल की पोल खोल रही थी दरअसल ये मित्र एक औसत दर्जे के पत्रकार हैं , अर्थाभाव में ज्‍यादा पढ तो नही पाऐ थे पर सुबह का सदुपयोग करते हुऐ अखबार बाटते थे,बिल के साथ विज्ञप्ति भी इकठा करने लगे और जल्‍द ही विज्ञापनो की कमीशन का चस्‍का लग गया,उसे भी बटोरने लगे फिर कमीशन के लिऐ समाचारो का मेनुपुलेशन करके विज्ञापनो को ही शातिराना शब्‍दो से समाचार की शक्‍ल देने लगे, जल्‍द ही अखबार के मालिक के लिऐ धन जुटाने और राजसत्‍ता के विचारधारा को हवा देने के प्रयोग में सफल होकर शहर के ब्‍यूरो प्रमुख हो गऐ तमाम सहूलियते शहर भैयया किस्‍म के लोगो से मिलने लगी, छत के साथ साथ और चार पहियो का भी जुगाड हो गया, मंत्री जी के आर्शिवाद से सरकारी खर्च पर विदेश यात्रा भी हो गई किसी राजनैतिक व सामाजिक के बजाय मसाज कराने के टूर में , हैसियत ऐसी हैं कि शहर के तमाम बडे प्रतिष्‍ठान ही नही पुलिस विभाग भी समय समय

लोकतंत्र के यही हैं प्रहरी....... ?

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पिछले दिनो एक लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी के साथ बैठक हो गई , समाज, व्‍यवस्‍था, राजनीति, प्रशासन,शिक्षा, चिकित्‍सा,व्‍यापार,उद्वोग आदि आदि पर इनकी भावुक टिप्‍पणीयो में मुझे लगातार अराजकता की आहट सुनाई पड रही थी, तमाम बाते ढोल की पोल खोल रही थी दरअसल ये मित्र एक औसत दर्जे के पत्रकार हैं , अर्थाभाव में ज्‍यादा पढ तो नही पाऐ थे पर सुबह का सदुपयोग करते हुऐ अखबार बाटते थे,बिल के साथ विज्ञप्ति भी इकठा करने लगे और जल्‍द ही विज्ञापनो की कमीशन का चस्‍का लग गया,उसे भी बटोरने लगे फिर कमीशन के लिऐ समाचारो का मेनुपुलेशन करके विज्ञापनो को ही शातिराना शब्‍दो से समाचार की शक्‍ल देने लगे, जल्‍द ही अखबार के मालिक के लिऐ धन जुटाने और राजसत्‍ता के विचारधारा को हवा देने के प्रयोग में सफल होकर शहर के ब्‍यूरो प्रमुख हो गऐ तमाम सहूलियते शहर भैयया किस्‍म के लोगो से मिलने लगी, छत के साथ साथ और चार पहियो का भी जुगाड हो गया, मंत्री जी के आर्शिवाद से विदेश यात्रा भी हो गई किसी राजनैतिक व सामाजिक के बजाय मसाज कराने के टूर में , हैसियत ऐसी हैं कि शहर के तमाम बडे प्रतिष्‍ठान ही नही पुलिस विभाग भी समय समय पर इनके लिऐ शरा

! नारी क्यों बेचारी !

! नारी क्यों बेचारी ! उसको नही देखा हमने कभी,पर इसकी जरुरत क्या होगी, ऐ मां तेरी सूरत से भली ,भगवान की सूरत क्या होगी, महिलाओ पर तमाम कसीदे पढनेकी औपचारिकता को इस पंक्ति में समेटते हुऐ मैं सीधे नारी की व्यथा कथा के आकडो पर बात करुगा.... दुनिया के 1.3 अरब लोग नितान्त गरीब हैं इनमे सत्तर प्रतिशत महिलाऐ है,जबकी यही महिलाऐ दुनिया के कामकाज के कुल घण्टो में दो तिहाई घण्टो काम करती हैं,और दुनिया की कुल आय से मिलता हैं इन्हे दसवा हिस्सा..,अमत्र्य सेन के क्षमता और कार्य या फिर हाइजर के आय और व्यय अर्थात विश्व के हर सिध्दांत में यह यह अगर मुनाफे की बात है तो दुनिया इनके जान के पीछे क्यो पडी हैं...! देश में पनपी चन्द सुन्दरियो,टी.वी.पर बडे बडे आलीशान बंगलो चमचमाती कारो के साथ हील वाली सैंडिल खटखटाती बांस सी लम्बी नजरे तरेरती माडलो को या उगलियो में गिनी जा सकने वाली प्रतिप्ठित कंंपनी के सी.इ्र्र.ओ.या फिर कुछऐक राज्यपाल या मंत्री मुख्यमंत्री का महिला होना समूचे भारतीय नारी का प्रतिक मानकर आत्ममुग्धता तो कतई उचित नही, भारत के नक्शे मे केरल एक ऐसा राज्य है जहां निर्धनता होने के बाव
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खरी खरी मंहगाई दस पैसे कप चाय तीस पैसे का दोसा से दादाजी का नाश्‍ता हो जाता था आज ये सच्चाई जितनी सुखद लगती हैं,उतनी ही दुखद लगती हैं कि हमारा पोता बीस रुपये कप चाय पीकर दो सौ रुपये का दोसा खाऐगा, बात साधारण सी इसलिऐ हो जाती हैं क्योकि आज जिस वेतन पर पिताजी सेवानिवृत हो रहे हैं बेटा आज उस वेतन से अपनी सेवा की शुरुवात कर रहा हैं, सन् 1965 में पैट्रोल 95 पैसे लीटर था चालीस सालो में पचास गुना बढ गया तो आश्‍चर्य नही की 2050 में भी अगर हम इसके विकल्प को न तलाश पाऐ तो 2500 रुपये लीटर आज जैसे ही रो के या गा के खरीदेगे, मंहगाई के नाम पर इस औपचारिक आश्‍वासन से किसी का पेट नही भरता पर कीमत का बढना एक सामान्य प्रक्रिया जरुर हैं पर ये सिलसिला पिछले कुछ सालो से ज्यादा ही तेज हो गया हैं जहां आमदनी की बढोतरी इस तेजी की तुलना में अपेक्षाकृत कमजोर महसूस कर रही हैं वही से शुरू होती हैं मंहगाई की मार, दरअसल मंहगाई उत्पादक व विक्रेता के लिऐ तो मुनाफा बढाने का काम करती हैं पर क्रेता की जेब कटती जाती हैं देश में तेजी से बढती मंहगाई पर राजनेताओ की लम्बे समय से खामोशी समझ से परे हैं बस कैमरे के सामने आपस में