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इमोशनल अत्‍याचार

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जब हम छोटे थे तब डमरू वाले मदारी और उनके जमूरे आते थे,जो बंदर, बंदरिया व भालू की उछलकूद के साथ इनकी शादी भी कराते थे बंदरिया के नखरे ,प्‍यार और रूठ कर मायके जाने की अदा, भालू का दुल्‍हा बन कर मटकना खूब हंसाता था, ऐसा ही कुछ कुछ होता था ढोल और थाली बजाते हुऐ रस्‍सी पर चलने वालो और छोटे से रिंग से अपने शरीर को तोड मरोड कर निकालने वाले बच्‍चो के खेल में, जिसमें भी मेहनत व कलाबाजी थी,मंनोरंजन भी अच्‍छा होता था, रूपया, दो रूपया, चांवल आटा देकर लोग खुश हो लेते थे पर बात तब बिगडती थी इन मदारी किस्‍म के लोगो ,द्वारा जब हम जैसे तमाशबीनो में प्रबल असुरक्षा के भय को जगा कर वैज्ञानिक प्रमाणिकताहीन ताबीज बेचने का प्रयास होता था और यही इमोशनल अत्‍याचार की शुरूवात हैं.... ऐसा ही कुछ कर रहे हैं हमारे देश के बाबा किस्‍म के लोग.......निरोग के लिऐ योग तो ठीक हैं,पर संत के चोले में चल रहा जडी बूटी का बडा कारर्पोरेट बिजनेश पुरे देश में उसके आउटलेट खोल कर झोला छाप लोगो की कलम से प्रमाणिकताहीन जडी बूटी, सब्‍जी भाजी,नैतिकता और डाक्‍टरेट की किताबो के आकर्षक पैकट उचे दाम पर बिकवाना ये भी तो हैं इमोशनल अत