घूटन या फिर दो तंमाचे

दो तंमाचे




घूटन या फिर दो तंमाचे
पिछले दिनो देश के एक बडे बैंक समूह के दफतर जाना हुआ ,दरअसल एक परिचित की अचानक मौत हो गई थी, जिनकी श्रीमति पहले ही गुजर चुकी थी, पिताजी के पैसे तो थे पर देश के सबसे बडे दस हजार शाखाऐ , 8500 ए टी एम वाले बैंक के खाते में ,जिसके लिऐ बच्‍चीया परेशान हो रही थी रोज तमाम दस्‍तावेज बनवा कर बैंक जाती कोई न कोई कमी बताकर बैंक लौटा देता ,मई जून की गर्मी में रोज रोज की भाग भागदोड कर अपने पिता और स्‍वंय अपने तमाम दस्‍तावेजो साथ ही इस बैंक का खाताधारी पहचानकर्ता और उसके तमाम दस्‍तावेज जुटाने के बावजूद ये परेशान ये लोग हार कर मेरे पास पहुचे मुझसे जमानत लेने की बात कही, मैं इनके पिताजी को व्‍यक्‍तीगत तौर पर जानता था और इसी बैंक में भी मेरा लम्‍बे समय से स्‍वस्‍थ सम्‍बंध था,स्‍वभाविक तौर पर मैंने तुरंत जमानतदार के तौर पर अपना अकांउण्‍ट नम्‍बर के साथ हस्‍ताक्षर कर दिये, कुछ दिनो बाद ,मुझे फिर उनका फोन आया कि आप को बैंक में बुला रहे हैं, मैं बच्‍चीयो के प्रति स्‍वाभाविक हमदर्दी पर बैंक का इस तरह बुलाना ठीक नही लगा, खैर मैं, लुभावने कारर्पोरेट चकाचौंध के ए.सी.बैंक नियत समय पर पहुच गया, मलाईदार शक्‍लो के लोग के हाथ कमांड थी, खैर मैंने अपनी उपस्थिती दर्ज कराई, उनका टका सा सवाल आपकी पहचान,मैंने अपने अकांउण्‍ट नम्‍बर का वास्‍ता दिया उन्‍हे वह मंजूर नही मैंने हस्‍ताक्षर मिलान को भी वे तैयार नही मैंने यातायात विभाग के कार्ड को भी यह कह कर खारिज कर दिया कि ये तो सडको पर बनते हैं जिस पर यातायात अधिक्षक का हस्‍ताक्षर थे,यह कार्ड बनने का तरीका बताना बेकार था, मुझे एहसास हो गया ये साहब सहयोग करने के कतई मूउ में नही हैं,मैंने शाखा प्रमुख के ओर रूख किया प्रकरण देखते ही उनको अपने शानदार आफिस की महक खराब होने का भय सताने लगी फिर वो कैसे अपने बाबु की बात काटते खैर मैंने वोटर आई.डी. से मैंने मेरे कहे जाने वाले बैंक को अपनी पहचान बताई पर साहब को अब ये मेरे रहने का भी सबूत चाहिये था चलिये मैने ये भी लाकर दिया की मैंने इसी बैंक के पास अपनी पच्‍चीस लाख रूपये की प्रापर्टी बतौर बंधक रख नौ लाख लोन लेकर चौदह लाख भरने का लगातार पिछले चार सालो से सफल प्रयास कर रहा हूं , और दरअसल इसी ब्‍याज के खेल से ये उपर से चिकने चुपडे अन्‍दर से फटी चडडी पहनने वाले लोगो को ए.सी. का सुख ही नही मिलता,रोजी रोटी भी चलती हैं,



मुझे बैंक के नियम कायदो से कोई शिकायत नही है,और नही मुझे इस पर कोई सुझाव देना हैं पर कुबेर के इन दलालो से यह सवाल कतई गैरवाजिब नही कि तमाम आन लाईन, इन्‍टरनेट, कोर बैंकिग की बाते करने वालो ने जब खाता खोला था तब मेरे तमाम से को दस्‍तावेजो को लेकर,समझकर,ही मुझे अपना ग्राहक बनाया‍ था,तो क्‍या मेरे अकांउण्‍ट नम्‍बर के साथ हस्‍ताक्षर से तमाम जानकारी को प्रमाणित नही किया जा सकता था...? या सीधे जनसामान्‍य की भाषा में बैंक द्वारा पैसे हजम करने का तरीका नही हैं..? या ये मान लिया जाऐ की निगम दफतरो के बाबुओ की तरह यहां भी हराम की आदत की आदत लग रही हैं ,



उल्‍लेखनीय हैं कि केवल भारतीय रिजर्व बैंक के अधीनस्‍‍थ अपने आपको राष्‍टीयक़त बैंक होने का दम भरने वाले ये गैर सरकारी बैंक हमारे ही जमा पूजीं को बाजार में चला कर जी रहे हैं और सबका बैंक जैसे स्‍लोगन के नीचे बैठे लोग को किसी से मदद तो दूर बात का सहूर भी नही हैं ,
भारतीय जनमानस के लिऐ पल पल घटने वाली सामान्‍य सी घटना हैं ,लडना नियमो के खिलाफ हैं , शिकायत अर्जीयो का खिलवाड हैं पर घूटन से तो बेहतर ही हैं की पुरे आफिस के सामने दो तमाचा तो लगा ही दो............



सतीश कुमार चौहान , भिलाई

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