! नारी क्यों बेचारी !
! नारी क्यों बेचारी !
उसको नही देखा हमने कभी,पर इसकी जरुरत क्या होगी,
ऐ मां तेरी सूरत से भली ,भगवान की सूरत क्या होगी,
महिलाओ पर तमाम कसीदे पढनेकी औपचारिकता को
इस पंक्ति में समेटते हुऐ मैं सीधे नारी की व्यथा कथा के आकडो पर बात करुगा....
दुनिया के 1.3 अरब लोग नितान्त गरीब हैं इनमे सत्तर प्रतिशत महिलाऐ है,जबकी यही महिलाऐ दुनिया के कामकाज के कुल घण्टो में दो तिहाई घण्टो काम करती हैं,और दुनिया की कुल आय से मिलता हैं इन्हे दसवा हिस्सा..,अमत्र्य सेन के क्षमता और कार्य या फिर हाइजर के आय और व्यय अर्थात विश्व के हर सिध्दांत में यह यह अगर मुनाफे की बात है तो दुनिया इनके जान के पीछे क्यो पडी हैं...!
देश में पनपी चन्द सुन्दरियो,टी.वी.पर बडे बडे आलीशान बंगलो चमचमाती कारो के साथ हील वाली सैंडिल खटखटाती बांस सी लम्बी नजरे तरेरती माडलो को या उगलियो में गिनी जा सकने वाली प्रतिप्ठित कंंपनी के सी.इ्र्र.ओ.या फिर कुछऐक राज्यपाल या मंत्री मुख्यमंत्री का महिला होना समूचे भारतीय नारी का प्रतिक मानकर आत्ममुग्धता तो कतई उचित नही,
भारत के नक्शे मे केरल एक ऐसा राज्य है जहां
निर्धनता होने के बावजूद स्त्री मृत्युदर व भ्रूण हत्या अपेक्षाकृत कम हैं और संभवत इसकी वजह यहां की सरकार का महिलाओ के स्वास्थ व शिक्षा के प्रति सजग होना ही हैं दूसरे राज्यो में इस बेरुखी के अलावा घटते संसाधनो का भीअसर बढते स्त्री मृत्युदर व भ्रूण हत्या में दिख रहा है। भारत में साठ प्रतिशत महिलाऐ आज भी गरीबी रेखा के नीचे हैं,और पच्चीस प्रतिशत की दयनीय स्थिती हैं ,समय के साथ बाजार में स्त्रीश्रम की मांग तो बढी पर मूल्य नही जबकी अदृश्य श्रमशक्ति में महिलाओ का योगदान किसी से छिपा नही हैं ठेका मजदूर,घरेलू उघोग के अलावा शहरी औधोगिक व्यापारिक प्रतिप्ठानो में इनका खूब शोपण हो रहा ळें कम मजदूरी में अनियमित,असंगठित,अस्थाई कार्यशैली,अनिर्धारित रोजगार के घण्टे दमघोटू अस्वास्थकर गंभीर रसायनो के कार्यो में कम उम्र की लडकियो से काम लिया जाना एक आम बात हैं आवश्यक योगयता केवल विवशता ही हैं जहॉ सरकार की तमाम महिला हित की योजनाओ को ठेंगा दिखाया जा रहा हैं यहां तकनीकी तौर पर अनुभवी होने पर प्रताडित किया जाता हैे ।
दरअसल कायदे कानून के सरकारी हथियारो पर भप्टाचार के
जंग लग गऐ हैं या फिर शोपक वर्ग के साथ खडी हैं और स्वंय विशेपकर असंगठित नारी भी भारतीय सूचना,श्रम व स्वास्थ मंत्रालयो से नाउम्मीद हैं इसीलिऐ महिला का अशिक्षित बना रहना पुरुपो की श्रेप्ठता निर्धारित करता हैं,पर सिक्के का दूसरा पहलू भी कम भयावह नही है जहां महिला स्वंय एक दूसरे के शोपण में लिप्त ळे, पिता ने शादी के लिऐ कितनो से कर्ज लिया,मिन्नते की, कैसे कैसे पापड बेले ये अपने बेटे की शादी में हर महिला भूल जाती हैं इसी तरह पति की इमानार और सादगी भरी छबि से बेहतर आर्थिक स्पधा में जीत का भप्ट्र चेहरा ज्यादा बेहतर लगता हैं।
दक्षता के अभाव में,असुरक्षा और बढती अमर्यादित सामाजिक
चकाचैंध के बीच गिरती र्आिथर्र्र््ाक स्थिती का सबसे शातिराना लाभ देहबाजार उठा रहा हैं जिसकी उदारवादी अथ्र्रनीति उत्प्रेरक का कार्य करती हैं जो कई बार यह एहसास भी कराता हैं कि जीवन स्तर उपर उठ रहा हैं पर यह भी नही भूलना चाहिये यह श्रम का एकमात्र विशिप्ठ प्रकार होने के साथ साथ अपराध भी हैैं , यहां भी समाज के सामने यह सवाल नही रहा कि महिला देह बाजार में क्यौंं गई , अब तो टका सा सवाल हैं कि क्यौं न जाऐ .........
विकाश का उददेश्य गरीबी,बेरोजगारी के अलावा असमानता दूर करना
भी हैं और इसमे स्त्री पुरुप दोनो को समान स्नेह आदर और सम्मान मिलना ही चाहियै । महिलाओ को भी यह तो समझना ही होगा की शिक्षा उनका संवैधानिक अधिकार हैे और संगठन में ही तमाम ताकत हैं जो उनके आत्मस्वाभिमान का मूलमंत्र भी हैं क्योकी इसी से देश के नीतिनिर्धारको और नौकरशाह वर्ग को उनका दायित्वो बोध आसानी से कराया जा सकवा हैं कयोकी संवैधानिक स्तर पर महिला अधिकारो का खाता बैंकिग भापा में ओ.डी. हो गया हैंं और इसीलिऐ बेचारे स्त्री प्रताडित पुरुपो की भी गुहार अब समाज में सुनाई पड रही हैं ...........
सतीश कुमार चैहान ....
उसको नही देखा हमने कभी,पर इसकी जरुरत क्या होगी,
ऐ मां तेरी सूरत से भली ,भगवान की सूरत क्या होगी,
महिलाओ पर तमाम कसीदे पढनेकी औपचारिकता को
इस पंक्ति में समेटते हुऐ मैं सीधे नारी की व्यथा कथा के आकडो पर बात करुगा....
दुनिया के 1.3 अरब लोग नितान्त गरीब हैं इनमे सत्तर प्रतिशत महिलाऐ है,जबकी यही महिलाऐ दुनिया के कामकाज के कुल घण्टो में दो तिहाई घण्टो काम करती हैं,और दुनिया की कुल आय से मिलता हैं इन्हे दसवा हिस्सा..,अमत्र्य सेन के क्षमता और कार्य या फिर हाइजर के आय और व्यय अर्थात विश्व के हर सिध्दांत में यह यह अगर मुनाफे की बात है तो दुनिया इनके जान के पीछे क्यो पडी हैं...!
देश में पनपी चन्द सुन्दरियो,टी.वी.पर बडे बडे आलीशान बंगलो चमचमाती कारो के साथ हील वाली सैंडिल खटखटाती बांस सी लम्बी नजरे तरेरती माडलो को या उगलियो में गिनी जा सकने वाली प्रतिप्ठित कंंपनी के सी.इ्र्र.ओ.या फिर कुछऐक राज्यपाल या मंत्री मुख्यमंत्री का महिला होना समूचे भारतीय नारी का प्रतिक मानकर आत्ममुग्धता तो कतई उचित नही,
भारत के नक्शे मे केरल एक ऐसा राज्य है जहां
निर्धनता होने के बावजूद स्त्री मृत्युदर व भ्रूण हत्या अपेक्षाकृत कम हैं और संभवत इसकी वजह यहां की सरकार का महिलाओ के स्वास्थ व शिक्षा के प्रति सजग होना ही हैं दूसरे राज्यो में इस बेरुखी के अलावा घटते संसाधनो का भीअसर बढते स्त्री मृत्युदर व भ्रूण हत्या में दिख रहा है। भारत में साठ प्रतिशत महिलाऐ आज भी गरीबी रेखा के नीचे हैं,और पच्चीस प्रतिशत की दयनीय स्थिती हैं ,समय के साथ बाजार में स्त्रीश्रम की मांग तो बढी पर मूल्य नही जबकी अदृश्य श्रमशक्ति में महिलाओ का योगदान किसी से छिपा नही हैं ठेका मजदूर,घरेलू उघोग के अलावा शहरी औधोगिक व्यापारिक प्रतिप्ठानो में इनका खूब शोपण हो रहा ळें कम मजदूरी में अनियमित,असंगठित,अस्थाई कार्यशैली,अनिर्धारित रोजगार के घण्टे दमघोटू अस्वास्थकर गंभीर रसायनो के कार्यो में कम उम्र की लडकियो से काम लिया जाना एक आम बात हैं आवश्यक योगयता केवल विवशता ही हैं जहॉ सरकार की तमाम महिला हित की योजनाओ को ठेंगा दिखाया जा रहा हैं यहां तकनीकी तौर पर अनुभवी होने पर प्रताडित किया जाता हैे ।
दरअसल कायदे कानून के सरकारी हथियारो पर भप्टाचार के
जंग लग गऐ हैं या फिर शोपक वर्ग के साथ खडी हैं और स्वंय विशेपकर असंगठित नारी भी भारतीय सूचना,श्रम व स्वास्थ मंत्रालयो से नाउम्मीद हैं इसीलिऐ महिला का अशिक्षित बना रहना पुरुपो की श्रेप्ठता निर्धारित करता हैं,पर सिक्के का दूसरा पहलू भी कम भयावह नही है जहां महिला स्वंय एक दूसरे के शोपण में लिप्त ळे, पिता ने शादी के लिऐ कितनो से कर्ज लिया,मिन्नते की, कैसे कैसे पापड बेले ये अपने बेटे की शादी में हर महिला भूल जाती हैं इसी तरह पति की इमानार और सादगी भरी छबि से बेहतर आर्थिक स्पधा में जीत का भप्ट्र चेहरा ज्यादा बेहतर लगता हैं।
दक्षता के अभाव में,असुरक्षा और बढती अमर्यादित सामाजिक
चकाचैंध के बीच गिरती र्आिथर्र्र््ाक स्थिती का सबसे शातिराना लाभ देहबाजार उठा रहा हैं जिसकी उदारवादी अथ्र्रनीति उत्प्रेरक का कार्य करती हैं जो कई बार यह एहसास भी कराता हैं कि जीवन स्तर उपर उठ रहा हैं पर यह भी नही भूलना चाहिये यह श्रम का एकमात्र विशिप्ठ प्रकार होने के साथ साथ अपराध भी हैैं , यहां भी समाज के सामने यह सवाल नही रहा कि महिला देह बाजार में क्यौंं गई , अब तो टका सा सवाल हैं कि क्यौं न जाऐ .........
विकाश का उददेश्य गरीबी,बेरोजगारी के अलावा असमानता दूर करना
भी हैं और इसमे स्त्री पुरुप दोनो को समान स्नेह आदर और सम्मान मिलना ही चाहियै । महिलाओ को भी यह तो समझना ही होगा की शिक्षा उनका संवैधानिक अधिकार हैे और संगठन में ही तमाम ताकत हैं जो उनके आत्मस्वाभिमान का मूलमंत्र भी हैं क्योकी इसी से देश के नीतिनिर्धारको और नौकरशाह वर्ग को उनका दायित्वो बोध आसानी से कराया जा सकवा हैं कयोकी संवैधानिक स्तर पर महिला अधिकारो का खाता बैंकिग भापा में ओ.डी. हो गया हैंं और इसीलिऐ बेचारे स्त्री प्रताडित पुरुपो की भी गुहार अब समाज में सुनाई पड रही हैं ...........
सतीश कुमार चैहान ....
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