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Showing posts from November, 2010

सौन्दकर्य का नकाब

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मुंह में दांत नही, पेट में आंत नही, फिल्मर देख कर बुढा कुछ ज्यानदा ही गरम हो गया हैं, इन जुमलो के साथ लतियाऐ गऐ बुढे की आंख से चश्माट व सायकल से सीट अलग हो कर बिखर गऐ थे, स्था‍नीय सिनेमा हाल के सामने घटी इस घटना कुछ लोगो ने बीच बचाव कर बुढे को बचाते हुऐ बुढे से लडकी को घूरने का कारण पुछा तो जानकर हैरानी हुर्इ की दरअसल बुढे को यह शक हो गया था कि टाकीज से नकाबपोश युवा जोडी में नवयुवती उसकी लडकी थी जो घर से स्कू ल के लिऐ निकली थी इससे पहले की बुढा कुछ कह पाता, लडका बुढे से घूरने का आरोप लगाते हुऐ उलझा पडा,, इसी तारतम्यी में कुछ अतिसंवेदनशील सामाजिक मर्यादा के ठेकेदार किस्मन के प्राणीयो ने भी बुढे पर दो दो हाथ अजमा हुऐ पटक दिया,लडकी के साथ साथ् लडका भी मौके से गायब हो गया, इसलिऐ सच्चाढई तो पता नही चल पाई पर नकाब का खमियाजा बुढे बाप को मिल गया था, सुर्य किरणो में मौजूद अल्ट्रा वायलेट से व फिर शहरो के धूल से बचने के नाम युवा पीढी में नकाब का चलन आज अपने पुरे शबाब पर हैं और और इस नकाब की आड में चल रहा व्याधभिचार और अपराध का ताडव भी उसी तेजी से अपना रंग दिखा बढ रहा हैं, सडक पर चलते कई बार ऐ

वसूली

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पिछले दिनो सामान्य डाक से पुलिस विभाग का एक पत्र मिला विगत 8 नवंम्बऐर को आपने सुपेला चौक पर यातायात सिग्न ल सूट किया, इसलिऐ यातायात कार्यालय में उपस्थित होकर दो सौ रूपये बतौर जुर्माना जमा करे, मुझे काफी आश्चार्य हुआ क्योाकी मैं ज्याहदातर कार से ही आना जाना करता हॅू , बाइक बिना हेलमेट, आवश्यहक पेपर और 40 से ज्यातदा की स्पीरड पर चलाता नही हूं ,खैर संभव हैं कि स्टा फ में किसी ने मेरी बाइक इस्तोमाल करते हुऐ ऐसा दुस्सातहस किया हो, मैं यातायात कार्यालय चले गया फाइन पटाने पर हवलदार ने दो सौ बीस रूपये मांगे मैंने दो सौ रूपये बतौर लिखे होने की बात की तो साहब कुछ झल्ला ऐ और डाक खर्च की बात करने लगे , मैंने केवल दस रूपये चिल्ल हर होने की बात कह कर लिफाफे पर लगी पांच रूपये की टिकट दिखाई , जिसे देखकर बगल में सिगरेट का कस मारकर अपनी थकान उतार रहा सिपाही हरकत में आ गया और कहने लगा साहब जरूरी नही हैं, आप केवल दो सौ रूपये ही दे दीजिऐ, दरअसल यहां सुबह से बैठे बैठे कमर दर्द दे देती हैं, और आदत खडे रहने की हैं चाय नाश्ता भी निकलता रहता हैं, अब तो शाम को घर सब्जीे ले जाने का जुगाड नही जम रहा हैं हमने दस रू

आवाज दे कहां हैं..........

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सत्त र के दशक में मनोरंजन का सबसे सुलभ साधन रेडियो ही था, जो समय समय पर सही और रोचक,ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वलसनीय समाचारो का माध्य म भी था, रेडियो सिलोन, विविध भारती, आल इण्डिया रेडियो, आकाशवाणी का दिल्लीस केन्द्र , क्ष्ेेत्रिय प्रसारण केन्द्रर में आकाशवाणी का रायपुर केन्द्रं, ये आकाशवाणी हैं सुबह के आठ बे हैं अव आप देवकी नंदन पाण्डेल से समाचार सुनिये इतनी शब्दआ ही पुरे देश को गंभीरता में जकड लेते थे तमाम लोग अपनी घडी का समय मिलाकर चाबी भरने लगते थे उस दौर में प्रसारित समाचार विश्व सनीयता की कसौटी पर सौ फिसदी सही होने के साथ उनकी अपनी एक गरिमा होती थी, इसी तरह फिल्मी गीतो का के तमाम फरमाईशी कार्यक्रमो और उनसे जुडे देश भर के श्रोता संघ, विविध भारती का जय माला शशी भूष्ण शर्मा आकाशवाणी रायपुर का आपके मीत ये गीत कल्पाना यादव, किशन गंगेले,लाल राम कुमार सिंग मिर्जा मसूद , लोकगीत आधारित सुर सिंगार प्रभा डमोर युवाओ के लिऐ युववाणी कमल शर्मा किसानो के लिऐ चौपाल बरसाती भैयया इसी तरह के रेडियो सिलोन के शशी व पदमीनी परेरा यहां के लुभावने कार्यक्रमो में आप ही के गीत, भुले बिसरे गीत इसमे सहगल

हाय रे मूर्ति पूजा

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आज सुबह बेड टी के अखबार में बैनर के साथ एक मंजे पत्रकार ने अपनी दंगाइ्र भाषा में पुरे शहर में धार्मिक उन्माीद जैसी स्थिती का जिक्र किया था जिसकी वजह शहर की एक गली के तिराहे पर लगी एक मूर्ति को किसी आदमी / जानवर द्वारा खण्डित कर दिया गया था , अनुयायी सडको पर निकल उतेजक बयानबाजी कर रहे थे, पुलिस प्रशासन का पुतला जला कर कुछ गमछाधारी गरिया रहे थे, कुछेक सडक पर चक्काा जाम कर अपनी ताकत दिखा रहे थे, पुरा तंत्र अस्त्‍ व्ययस्तह था, समाचार पढकर पिछले दिनो घर के पास खाली पडे मैदान में खडे किये गऐ एक छोटे बांस जिस पर लाल कपडे में लिपटे लटके नारियल और उसके नीचे रखे एक बेआकार बजरंगी रंग से पेन्टु किया गया बोल्डेर दिमाग को झकझोरने लगा.......... दरअसल मैं बचपन ( 35 साल पहले ) से ही नेशनल हाइवे 6 के बगल में लगे उस मैदान को देख रहा था तब न तो विशेष्‍ क्षैत्र विकास प्राधिकरण अता पता था और न ही नगर निगम का, इस क्षेत्र के लिऐ स्वाथस्थो शिक्षा रोजगार सडक पानी जैसी तमाम बुनियादी आवश्यपकताऐ स्वीयं जुगाड से चलती थी न प्रशासन का कोई दायित्व बनता था और न हमें अपने कोई अधिकार समझ आते थे , तमाम जगह खाली ही थी