आवाज दे कहां हैं..........

सत्त र के दशक में मनोरंजन का सबसे सुलभ साधन रेडियो ही था, जो समय समय पर सही और रोचक,ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वलसनीय समाचारो का माध्य म भी था, रेडियो सिलोन, विविध भारती, आल इण्डिया रेडियो, आकाशवाणी का दिल्लीस केन्द्र , क्ष्ेेत्रिय प्रसारण केन्द्रर में आकाशवाणी का रायपुर केन्द्रं, ये आकाशवाणी हैं सुबह के आठ बे हैं अव आप देवकी नंदन पाण्डेल से समाचार सुनिये इतनी शब्दआ ही पुरे देश को गंभीरता में जकड लेते थे तमाम लोग अपनी घडी का समय मिलाकर चाबी भरने लगते थे उस दौर में प्रसारित समाचार विश्व सनीयता की कसौटी पर सौ फिसदी सही होने के साथ उनकी अपनी एक गरिमा होती थी, इसी तरह फिल्मी गीतो का के तमाम फरमाईशी कार्यक्रमो और उनसे जुडे देश भर के श्रोता संघ, विविध भारती का जय माला शशी भूष्ण शर्मा आकाशवाणी रायपुर का आपके मीत ये गीत कल्पाना यादव, किशन गंगेले,लाल राम कुमार सिंग मिर्जा मसूद , लोकगीत आधारित सुर सिंगार प्रभा डमोर युवाओ के लिऐ युववाणी कमल शर्मा किसानो के लिऐ चौपाल बरसाती भैयया इसी तरह के रेडियो सिलोन के शशी व पदमीनी परेरा यहां के लुभावने कार्यक्रमो में आप ही के गीत, भुले बिसरे गीत इसमे सहगल जी के गीत और एक ता‍रीख को खुश हैं जमाना आज पहली ता‍रीख...... , वाक्यी गीतांजली, बदलते साथी जैसी प्रतियोगी कार्यक्रमो ने तो देश ही नी विदेश के भी श्रोता साथीयो को एक सूत्र में बांध दिया था ,जब आप गा उठे कार्यक्रम ने तो बुढे जवान बच्चेन सबको शायर बना दिया था, अमीन सयानी के बिनाका गीत माला की वजह से बुधवार को लोग दिन भर लोग सरताज गीत की अटकले लगाते रहते थे , आपकी बधाईया में बजने वाले गीत तुम जीयो जारो साल के क्या कहने ,सन 1972 की जंग व हिन्दुी मुसलमान के बंटवारे के समय आल इण्डिया रेडियो की उर्दु सर्विस से प्रसारित आवाज दे कहां हैं कार्यक्रम से तो अपने सगे, दोस्तोी के लेकर घर घर में आंसू बहने लगते थे, कई बिछडे तो मिल भी गऐ,


इस दौर में पत्र मित्रता का अपना एक अलग क्रैज था, मेरे 1979 के जन्म दिन पर प्रसारित पत्रमित्रता के कार्यक्रम्‍ हफते के श्रोता में आप की इनायते आप के करम आप ही बताऐ कैसे भूलेगें हम...... गीत के साथ मेरा परिचय व पता रेडियो सिलोन से प्रसारित किया गया मुझे कुल 72 मित्रो के खत मिले जिसमें सात पाकिस्ता्न से, एक श्रीलंका और तीन पत्र बंगलादेश के युवा थे और इसमे 14 पत्रमित्र महिलाऐ थी, तमाम लोगो से पत्रो का सिलसिला लम्बात चला, ज्याुदातर पत्रो में हाकी/किक्रेट मैच , पिकनिक, मौसम और राजतंत्र के काफी गंभीर विषय भी होते थे और रेडियो कार्यक्रमो के अलावा कुछ रोमांटिक पत्र भी होते थे बंटवारे को भी पत्रो में जिक्र होता था

नासिक रोड की सुधानागर से भी मेरी ऐसी ही पर सबसे लम्बीव दोस्तीो चली, उसके पत्र काफी पारिवारिक और मर्यादित होते थे घर हर सदस्यी को यथायोग अभिवादन मेरी पढार्इ बडो का स्वाोस्थ /रोजगार उसके तमाम पत्रो का सार होता था, 1986 में मैं तमिलनाडु में दो साल के मेडिकल ट्रैनिग में चला गया वहां भी उसके पत्रो का सिलसिला चलता ही रहा, हर खत में पढाई खर्च और स्वाास्थह के प्रति हिदायते होती थी और मैं इस राज्य में भाषा के अलावा गेहूं की रोटी न मिलने को लेकर बहुत परेशान था हर खाने क चीज में चांवल होता था , जिसका दुख मैं अपने पत्रो में सुधा से भी करता था ,


एक दिन डाकिये ने हास्टतल आकर पार्सल आने की सूचना दी , हमने सोचा घर से आचार/कपडे आऐ होगें, हम पोस्टट आफिस पहुच गऐ डाकिये ने एक कोने में पडे एक छोटे से पार्सल की और ईशारा किया, जिस पर पुरी तरह से चीटिया लगी हुई थी, हमेशा की तरह पार्सल के सूचना पुरे हास्ट,ल में फैल गई, सब 27/28 छात्र इकठा हो गऐ, चीटिया हटाने के प्रयोग में बाहर धूप में रखे पार्सल पर सबके सब टुट पडें , जिसमे सुधा की भेजी रोटिया जिस पर चीटियों के सफेद सफेद अण्डेप लगे थे, पर इन से बेपरवाह सब ज्याटदा से ज्याीदा गप कर लेना चाहते थे, तमाम आपाधापी में मुझे भी एक टुकडा मिला जो आज21 साल बाद भी सुधा की याद में मेरी वर्कबुक में सुरक्षित रखा हैं उल्लेमखनीय बात ये थी की की मैने 25 सालो की दोस्तीी में कभी सुधा को देखा नही उसकी ब्लैैक्‍ / व्हाकइट फोटो जरूर आज भी मेरे पास हैं, उसने ये 10/15 रोटियो के भेजने के लिऐ 54/ रूपये की डाक टिकट लगाई थी जो उस दौर में हम दोनो के लिऐ बडी रकम थी,खैर सुधा की शादी नैनी में होने का कार्ड आया था मैं जा न सका , धीरे धीरे खतो का सिलसिला भी कम होकर खत्म ही हो गया मेरे साथ साथ घर के तमाम लोग आज भी सुधा को याद करते हैं और हम इस पवित्र रिश्तेे की दुहाई में यही कहते हैं .....आवाज दे कहां हैं ....................... सतीश कुमार चौहान भिलाई

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