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Showing posts from 2011

अन्ना का अतिवाद

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अन्‍ना फेक्‍टर पर बात करते हुऐ एक मित्र द्वारदिया यह तर्क कुछ बैचेन सा लगा कि ऐसे आन्‍दोलन जो लोकलुभावने होने की वजह से व्‍यापक जनसमर्थन बटोरते हैं उनमें अतिवाद पनपता हैं, जो समाज में तेजी से जहर घोलता हैं, मेरे जहन में तुरंत अन्‍ना की अकडती उगली और तरेरती आंखो की भाषा समझ में आने लगी, साथ ही ये भी समझ आने लगा की प्रजातंत्र में जनसमर्थन से बना जनप्रतिनीधि कई बार दंबगई पर क्‍यो उतारू हो जाता हैं, जिसे हम समय समय पर महसूस कर व्‍यवस्‍था को कोसते हैं, अतिवाद को परिभाषित करने के कई प्रकार हो सकते हैं। इसकी व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। लेकिन इससे शायद ही कोई असहमत हो कि हम शनै:-शनै: अतिवादी होते जा रहे हैं जिसका प्रभाव हमारे जीवन के आचार;विचार और व्यवहार पर चौतरफा दिखाई दे रहा है। यह प्रभाव जितना सामाजिक है उतना मानसिक भी जितना सार्वजनिक है, उतना व्यक्तिगत भी और जितना बाहरी है उतना आंतरिक भी। अतिवाद विचार का है , मानस का है , वृत्ति का है , यहां तक कि शांति और सहिष्णुता का भी है। हमारे ऊपर निरंतर हावी रहने वाली अशांति , अस्थिरता इस बात का निरंतर अहसास कि कहीं कुछ गड़बड़ है या

सर आप तो आप ही हैं .....

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भाजपाइयों द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के डमी को संस्कारित करने के लिए उन्हें शिशु मंदिर में दाखिले का नाटक किया गया, उसी चौक पर दूसरे दिन कांग्रेसियों ने बीच चौराहे पर राजनीति की पाठशाला खोल दी। इस पाठशाला में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के डमी को बदजुबान और मंदबुद्धि करार देते हुए न सिर्फ उन्हें राजनीति की पाठशाला से टीसी देकर स्कूल से निकालने का ड्रामा हुआ, बल्कि गडकरी को मानसिक अस्पताल में दाखिला देने के लिए उनकी मां को सलाह भी दी गई। साठ के दशक में बनी एक फिल्म के सीन में जवान निकम्मेा बेटे ने माता पिता को यह कहा था कि पैदा करने में तो मजा आया अब खिलाने में क्योि जान निकल रही हैं, समाज को यह डायलाग काफी नागवार गुजरा था काफी हो हल्लाा हुआ था,फिल्मो निर्माता ने क्षमा मांगते हुऐ यह सीन फिल्मम से हटा दिया था, आज हम रैंप्पह पर कम से कम कपडे पहनने वाली माडल के बचे कपडेा का भी फिसल जाना और नेताओ की जुबान फिसल जाना एक ही तरह कारनामा हैं, जो बेशक मीडिया के लिऐ मसाला तो हैं पर इन घटनाओ के देख / सुन कर बडी बेशर्मी महसूस होती है, हम किन लोगो को सवा सौ करोड आबादी क

अपनी ही दुकान

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देहरादून से मंसूरी जाते हुऐ काफी देर बाद बस के रूकते ही चाय व नाश्तेे की तलब में लगभग बस की हर सवारी नीचे उतर कर टाट की होटलनुमा चाय की दुकान के सामने सिमट गई , जहां बडी भटटी पर छोटी छोटी केतली में चालू और महाराजा के नाम से दो दाम की चाय बन रही थी ,सामने अलग अलग कांच की बरनीयो में बिस्कुट, चाकलेट, तोश, ब्रेड रखे थे , आठ नौ साल का एक स्मा इलिग फेश का लडका पैंबद लगी निकर हल्की महीन कमीज पहने ठंड से बेखौफ अपनी उगलीयो में चार चार गिलास गर्म चाय लिऐ दोड दोड कर सर्व कर रहा था और उतनी ही तेजी से खाली हो रहे गिलास को टंकी के पानी में खंगाल भी देता था, लकडी की पटिया ही टेबल कुर्सी थे , इस होटल का वेटर, स्प लायर , नौकर सब कुछ यही लडका था, व चाय बनाने वाला शक्सद मालिक, गा्हक किसी टूरिस्ट बस के रूकने से ही आते थे बाकी कुछ खास आबादी का क्षेत्र तो था नही , बस का हार्न बजते ही जल्दू भीड छट गई, हमने भी चाय पीने के बाद उसके हाथ रूपये रख दिऐ, वह पूरी फूर्ति से चन्दज मिनटो कुछ रेजगारी चिल्हर लेकर वापस आ गया, हमने शहरी होटल के टिप्सर की दर्ज पर एक सिक्को उसकी ओर बढा दिया, वह पहले तो सकपकाया फिर कनखियो स

सुरक्षा -किस की और कितनी …..?

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लैड माइंस ब्लास्ट……..हर बार की तरह वैसे ही खून से लथपथ कभी आदीवासी, कभी पुलिस, कभी सूदूर जंगलो मे रहने वाले ग्रामीणो की लाश.और अब कुछ नेता किस्म के लोग भी.। मौतों में अपने परिजनो को खोजते-भटकते या फिर चिथडो से लिपट के रोते लोग, हर बार की तरह वैसे ही मीडिया के लोगो की टी आर पी बढाती ब्रैकिंग न्यू ज, कैमरे के साथ भागता रिर्पोटर मुंह लटकाऐ मंत्री संत्री पक्ष विपक्ष्‍ गले के बजाय पेट से निकलते घोर निन्दाू बयान गुनाहगारों को सजा देने के वैसे ही वायदे , कायराना हरकत की फिलासिफी की बात कर खाली हाथ दिखाने की सरकारी फितरत पत्तोस को फूल बनाकर श्रद्वासुमन की रस्म अदायगी फिर नगर निगम के कचरो वाहनो से शहीद की डब्बा बंद होम डिलवरी , और कल को प्रोग्राम कहां कहां उद्रघाटन करना हैं , कहां क्याह भाषण पढना क्याो घोषणा करनी हैं कितने लोग जुटेगे, कहां पुतला जलवाना हैं कहां कहां बंद करवाना हें कौन रात केा मीडिया के साथ बैठ समाचार को को अपने पक्ष में सेट करेगा , संगठन को मजबूत कैसे किया जाऐ कौन कौन सी लोकलुभानी योजनाऐ तैयार हैं जिससे वोट बैंक बढेगा, विपक्ष से कैसे निपटना हैं आला कमान और राज्येपाल से राज

कबूतर

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थी बडी दोस्ती इन दो कबूतरो में, रोज मिलते थे ये शांतिवन के चबूतरो पे बरसो पुराना याराना था, एक का मंदिर दूसरे का मस्जिद की गुम्बदद पर घराना था, रोज की तरह जब इनमें चल रही थी गुटुर गुटुर, बीच में आ गिरा एक सफेद घायल, दोनो से उसका दुख देखा न गया, बडे प्यार से उसकी सेवा जतन किया , ठीक होते ही सफेद कबूतर तो फूर्र हो गया, पर जाते इन दोनो के बीच जाने क्याय बीज बो गया] धर्म के नाम पर ये दोनो नशेमान हो गऐ , पुर्वजो से चले आ रहे रिश्तेा लहूलहान हो गऐ, एक बुढे कबूतर इनका खूनखराबा देखा न गया, उसने पहले उस सफेद कबूतर का पता किया, फिर इनको अपने पास बैठाया और बताया , जिस घायल सफेद कबूतर ने था इन्हेऐ लडाया ... वह तो संसद की गुम्बेद से था आया .......

नौटकी का योग

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बाबा जी के पास बेशक कुछ भीड हैं उसके कुछ और भी कारण हैं पर इस भीड को जनआधार बनाकर जननायक बनने के लिऐ देश की निर्वाचन जैसी कुछ व्यैवस्थाकऐ है, हमारा संवैधानिक ढांचा प्रजातंत्र पर आधरित हैं और इसी के तहत न देश की कमान मनमोहन जी को दी ग्ईन हैं, दिग्गीध राजा सही कह रहे हैं अगर सरकारी दफतर में अपने कार्य के लिऐ ही सही अगर उची आवाज में बात करना सरकारी कार्यो में व्यावधान का अपराध दर्ज हो सकता हैं तो इस तरह योग शिविर के नाम पर सरकार को ललकारना ............... दरअसल हर दुस्सा हस को सह लेने वाले मनमोहन जी कमजोर या सीधे मुखिया कहे जाते थे, रामलीला मैदान की घटना इस भम्र को भी तोड ही दिया, इन बाबा जी द्वारा भीडतंत्र को लोकतंत्र का जामा पहनाने का यह प्रयास प्रजातंत्र के लिऐ आत्मीघाती कदम ही हैं, बाबा के साथ सवा सौ करोड में वे पांच दस लाख लोग हैं जो अध्याात्मम और अंधविश्‍वास में अंतर ही नही समझते क्याथ उनके दम पर हम अपने देश की ही सरकार को ललकारेगे तो विदेश के लोग तो आसानी से हमारी ऐसी की तैसी कर देगें, राम देव जी अगर योग को घर घर तक पहुचाने की बात करते हैं तो भष्ट्राऐचार रहित संस्का र की बाते भी घर

मिनटो में एक जगह पर परस्‍पर तीन विरोधी दलो का एक दिनी जंगी प्रर्दशन ......

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हमारे आफिस के सामने चौराहे पर एक सामन्य सा पान ठेला था, वही तकनीक से बना जिसमे नीचे गोदाम साथ साथ पनवाडी के लिऐ खडे होने की जगह मदारी के सामने डबबा जैसे एक लम्बाा लाल कपडे से ढका फ्रिज के काम सा डब्बाग जिसमे पान का समान रखा जाता उपर से चुन्निटदार झालर वालारंगीन कपडे का कवर, रात के लिऐ हरी टयूब्‍ लाइट, बडा साउण्डस बाक्सन जिसमे दादा कोउके स्टा इल के गाने चलते रहते हैं, देश दुनिया की खबर,चर्चा, हर वर्ग जाति,व्येवसाय के लोगो का मिलन कुल मिलाकर रंगीला व्यरवसाय और रंगीन मिजाज पनवाडी, व्यनस्तरम चौराहा होने की वजह से यहां आऐ दिन राजनैतिक गैर राजनैतिक धरना प्रदर्शन इसी पान ठेले के सामने होते रहते हैं, वही एक ही तरह का टेंट गददे ,माइक्‍, पुलिस के लिऐ दो चार कुर्सी का इन्त जाम, एक ही किस्म के झण्डेे बस रंग अलग, एक ही किस्मे के लोग बस शक्लेस अलग,रोज भीड जुटती पान गुटका और सिगरेट बिकते, धीरे धीरे पानी पाउच फिर कोल्डत ड्रिंक भी बिकने लगा, पनवाडी पक्काी व्यासपारी था उसने रोज रोज के धरना प्रदर्शन के लिऐ पुरा ताम झाम ही खरीद लिया, जिसमे टेंट गददे ,माइक्‍ के अलावा जलाने के लिऐ पुतले, नारे बाजी के लि

सुशासन ........

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आज के हमारे गौरवशाली प्रजातंत्र के लिऐ जैसा मनोविज्ञान हमारा आपका और देश के पेशेवर राजनैतिक सयानो का बन रहा हैं उस पर कुछ भी कहने से शर्मिन्‍दगी महसूस होती हैं, निसन्‍देह हम अवसर व उपभोक्‍तावाद की चपेट में दिग्‍भ्रमित हुऐ हैं पर नीतिनिर्धारको को अब सचेत होना ही पडेगा, जिसके लिऐ किसी दिशानिर्देश व ज्ञान की जरूरत नही, हमें तो इतिहास ने ही इतने सरल और सुनियोजित आर्दश और मर्यादित संविधान के साथ उसके सुखद उदहारण दिये हैं जिससे सुशासन हो सकता हैं  पर हमने नैतिकता तो दूर अपने ही मानवीय अभिव्‍यक्ति और आत्‍मसम्‍मान को भी तार तार कर भविष्‍य के लिऐ एक ऐसा सांचा रच डाला की व्‍यवस्‍था की बनावट ही प्रजातंत्र में कही फीट नही बैठ पा रही हैं........   चेन्नई से ८३ किलोमीटर की दूरी पर चेंगलपेट के पास एक कस्बा है “ उतीरामेरूर ” और आबादी लगभग २३०००. सन ८८० के दशक यह में चोल वॅशी राजा परंतगा सुंदरा चोल के आधीन था.वहां राजाओं के जमाने में भी ग्राम प्रशासन में प्रजातंत्र की व्‍यवस्‍था थी , कस्बा के बस अड्डे के पास ही एक शिव मंदिर है. उसकी दीवारों पर चारों तरफ हमारे संविधान की धाराओं की तरह ग्राम प्रशासन

जेब साथ न दे तो अन्ना् ........

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लोकपाल बिल के नाम पर हुई मुहिम से कुछ हो ना हो पर इस की परिभाषा पर चिन्तनन तो जरूर हो रहा हैं और हर कोई अपनी कमीज को झक सफेद कह कर दूसरे में दाग खोज रहा, कुछ महाभष्टाैचारी तो हजारे फैन क्लेब भी बना रहे हैं दरअसल मीडियापरस्त लोगो के लिेऐ अपनी पहचान को मान्यहता देने के लिऐ अन्ना एक सरल माध्यम बन गया हैं, अन्नाो के साथ के लोगो पर जो कुछ कहा जा रहा हैं वह तथ्योन से अलग नही हैं, जाहिर सी बात हैं कि अन्ना टीम का सदस्यस बन कर कोई अपने को पाक साफ नही कह सकता ,ये अलग बात हैं की इस टीम पर उगली उठाने से पहले हर कोई अपनी करतूतो से बचने का साहस नही जुटा पा रहा हैं, जन्तउर मन्ततर की भीड ये जरूर कह रही थी कि भष्टाेचार हैं, पर कोई एक्‍ भी अपने को भष्टािचारी बताने का साहस न जुटा सका और यही हाल हजारे कंपनी का था वह भी किसी एक को भी भष्टानचारी कहने का साहस न दिखा सकी, फिर ये सवाल साफ है कि कौन हैं जिसके खिलाफ से रस्माअदायगी हो रही हैं, सब्जीत वाले से कांटा अपने तरफ झुका कर खरीदारी करने व समय और ओहदे की बात कह कर शार्टकट और सुविधाशुल्कअ जैसे रास्तोक से काम निकालने वाले क्या अपेक्षाकंत कमजोर लोगो के लिऐ भष

बिना मरे स्‍वर्ग कहॉ.....

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कार सर्विसिंग के लिऐ हुण्‍डई के वर्कशाप गऐ तो पता चला नीचे किसी पत्‍थर की मार से डारसल एक्‍सल का एलाईमेंट बिगडा हुआ हैं, टायर जल्‍दी खत्‍म हो जाऐगा, इसलिऐ बेहतर हैं कि बदलवा ले, वर्कशाप के सुपरवाइजर भी जो देकर कह रहा था , सर क्‍लेम ले लो आपको कुछ करना नही पडेगा सर्विसिंग के खर्च्‍ में समान भी नया लग जाऐगा , हमने समय लगने की बात की तो किनारे के टेबल पर बैठे एक एजेन्‍ट किस्‍म के साहब ने कहा कि आप यहां आप केश पेमेन्‍ट कर गाडी कल शाम ले जाईऐ बाकी बीमा से तो चेक एक सप्‍ताह में आपको मिल ही जाऐगा, हमारे हां करते ही साहब ने चाय मंगाने के साथ साथ हमारी कार के पेपर भी फोटो कापी करवा लिऐ, रात को रास्‍ते में पडे एक बोल्‍डर टकराने की वजह से दुर्घटना की स्‍टोरी बनाते हुऐ क्‍लेम फार्म भी भर दिया गया, हमने दस्‍तखत्‍ किये, कार हमें आफिस छोडने के लिऐ भेज दी गई, तीन चार घण्‍टे बाद इन्‍शेारेंस सर्वेयर का फोन आ गया पहले तो तमाम नियम की बाते कर क्‍लेम निरस्‍त करने की बाते की फिर साहब लेन देन पर उतर गऐ हमने उसकी बात को टाल देना दिया ,इधर हमारी कार को खोल दिया गया था दो दिन बाद दिवाली थी हमने कहा चलो ठीक हैं