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Showing posts from April, 2010

सरकार

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सरकार रमुआ के यहां से थाली बजने की आवाज आई, पुर्व निर्धारित पांचवी संतान के आने का संकेत, टुटी सायकल पर फटी बण्‍डी पहने मट्रटी तेल बेचने वाला रमुआ खुशी से मदमस्‍त हो रहा हैं स्‍वास्‍थ, शिक्षा,रोजगार के लिऐ नही सिर्फ पौव्‍वा के लिऐ वोट देता हैं, रमुआ, देश की सरकार को, अधेड कुपोषण का शिकार, रामकली रमुआ की पत्‍नी अथवा रमुआ की सरकार जो दे चुकी हैं चार साल में पांचवी संतान अर्थात बुढापे का पांचवा सहारा इसलिऐ खुशी से मदमस्‍त हो रहा हैं..........

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार हर दफतर का शिष्‍टाचार बन बैठा हैं भ्रष्टाचार कहता हमसे हाथ मिलाओ, कर देंगें तुम्‍हारा बैडा पार , मैं भी इतराया ,अपने आप को कर्मयोगी बतालाया, पर वो भी कहां था मानने वाला, उसने पुरे प्रजातंत्र को ही कुछ इस तरह खंगाला बार्फोस,ताबूत,तेलगी,तहलका,हवाला सब गिना डाला, बडे गर्व से उसने कहा भष्‍ट्र नेता जनता न संभाल पाऐगे, बन जाओ हमारे ओ हरिशचंद, तुम्‍हारे बच्‍चे भी पल जाऐगें, नेता, अ‍‍भिनेता, पुलिस, कानून,हर कोई साथ मेरे नाचता हैं पंडित कुरान तो मुल्‍ला रामायण बांचता हैं, अवसरवाद् के दौर में भष्‍ट्रचार का ही जूनून हैं जनतंत्र के शरीर में भष्‍ट्रचार का ही खून हैं मेरा तो स्‍वाभिमान खौल रहा था भष्‍ट्राचार सर चढ के बोल रहा था, मुझे कोई तर्क सूझ न रहा था उसे तो गांधी ,बुद्ध भी नही बूझ रहा था हम दोनो के बीच एक अपाहिज मिल गया जिसे देख भष्‍ट्राचार भी हिल गया तिहाड से था आया और अपने को भष्‍ट्राचार का भाई बतलाया, बीमार चल रहा था दवाई की मिलावट ने तो और बीमार बनाया, अब तो भी भष्‍ट्राचार कतराने लगा,उसे भी अपना अपन अपाहिज भविष्‍य नजर आने लगा,,,,,,,, मैंने

कमीशन की बीमारी

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पिछले दिनो सेल द्वारा संचालित प्रदेश के सबसे बडे अर्थात 1000 बिस्‍तर के और सुविधासम्‍पन्‍न आलिशान अस्‍पताल के आपात कक्ष के पास से गुजर रहा था कि एक बदहवाश ग्रामीण ने मुझे रोकते हुऐ एक पर्ची दिखाते हुऐ पता पुछा, एक प्राईवेट और अपेक्षाक्रत स्‍तरहीन अस्‍पताल का पता था जहां असानी से पहुचना भी मुश्किल था, मैने पता बताने से पहले पुछ ही लिया क्‍यों..., उसने छाती से लगाऐ छोटे से बच्‍चे को दिखाते हुऐ बताया कि खेलते बच्‍चे को कोई स्‍कूटर से मार कर चले गया चालीस किलोमीटर दूर गांव से लाऐ हैं, डाक्‍टर हाथ नही लगा के देखने के बजाय पर्ची लिख दिया हैं यहां जाओ,मैंने बच्‍चे को देखा   शरीर अकड रहा था, संभवत् दिमाग की किसी नस पर चोट से हो रहा रिसाव का खून कही जम रहा था, और इससे दिमाग सुन्‍न हो रहा था ऐसे में ये आवश्‍यक था, बच्‍चे को तुरंत Anticoagulant like heparin देकर बचाव किया जा सकता हैं, मैंने बेहतर समझा की उपस्थित चिकित्‍सक से ही बात की जाय तो जूनियर डाक्‍टर जी ने पहले तो मुझे मेरी औकात बताई,फिर उस ग्रामीण पर नेतागिरी करने का आरोप लगाते हुऐ बच्‍चे के प्रति अशोभनीय टिप्‍पणी करने लगे , तब तक मैं काफ

घूटन या फिर दो तंमाचे

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दो तंमाचे घूटन या फिर दो तंमाचे पिछले दिनो देश के एक बडे बैंक समूह के दफतर जाना हुआ ,दरअसल एक परिचित की अचानक मौत हो गई थी, जिनकी श्रीमति पहले ही गुजर चुकी थी , पिताजी के पैसे तो थे पर देश के सबसे बडे दस हजार शाखाऐ , 8500 ए टी एम वाले बैंक के खाते में ,जिसके लिऐ बच्‍चीया परेशान हो रही थी रोज तमाम दस्‍तावेज बनवा कर बैंक जाती कोई न कोई कमी बताकर बैंक लौटा देता ,मई जून की गर्मी में रोज रोज की भाग भागदोड कर अपने पिता और स्‍वंय अपने तमाम दस्‍तावेजो साथ ही इस बैंक का खाताधारी पहचानकर्ता और उसके तमाम दस्‍तावेज जुटाने के बावजूद ये परेशान ये लोग हार कर मेरे पास पहुचे मुझसे जमानत लेने की बात कही, मैं इनके पिताजी को व्‍यक्‍तीगत तौर पर जानता था और इसी बैंक में भी मेरा लम्‍बे समय से स्‍वस्‍थ सम्‍बंध था,स्‍वभाविक तौर पर मैंने तुरंत जमानतदार के तौर पर अपना अकांउण्‍ट नम्‍बर के साथ हस्‍ताक्षर कर दिये, कुछ दिनो बाद ,मुझे फिर उनका फोन आया कि आप को बैंक में बुला रहे हैं, मैं बच्‍चीयो के प्रति स्‍वाभाविक हमदर्दी पर बैंक का इस तरह बुलाना ठीक नही लगा, खैर मैं, लुभावने कारर्पोरेट चकाचौंध के ए.सी.बैंक न

लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी

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पिछले दि नो एक लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी के साथ बैठक हो गई , समाज, व्‍यवस्‍था, राजनीति, प्रशासन,शिक्षा, चिकित्‍सा,व्‍यापार,उद्वोग आदि आदि पर इनकी भावुक टिप्‍पणीयो में मुझे लगातार अराजकता की आहट सुनाई पड रही थी, तमाम बाते ढोल की पोल खोल रही थी दरअसल ये मित्र एक औसत दर्जे के पत्रकार हैं , अर्थाभाव में ज्‍यादा पढ तो नही पाऐ थे पर सुबह का सदुपयोग करते हुऐ अखबार बाटते थे,बिल के साथ विज्ञप्ति भी इकठा करने लगे और जल्‍द ही विज्ञापनो की कमीशन का चस्‍का लग गया,उसे भी बटोरने लगे फिर कमीशन के लिऐ समाचारो का मेनुपुलेशन करके विज्ञापनो को ही शातिराना शब्‍दो से समाचार की शक्‍ल देने लगे, जल्‍द ही अखबार के मालिक के लिऐ धन जुटाने और राजसत्‍ता के विचारधारा को हवा देने के प्रयोग में सफल होकर शहर के ब्‍यूरो प्रमुख हो गऐ तमाम सहूलियते शहर भैयया किस्‍म के लोगो से मिलने लगी, छत के साथ साथ और चार पहियो का भी जुगाड हो गया, मंत्री जी के आर्शिवाद से सरकारी खर्च पर विदेश यात्रा भी हो गई किसी राजनैतिक व सामाजिक के बजाय मसाज कराने के टूर में , हैसियत ऐसी हैं कि शहर के तमाम बडे प्रतिष्‍ठान ही नही पुलिस विभाग भी समय समय

लोकतंत्र के यही हैं प्रहरी....... ?

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पिछले दिनो एक लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी के साथ बैठक हो गई , समाज, व्‍यवस्‍था, राजनीति, प्रशासन,शिक्षा, चिकित्‍सा,व्‍यापार,उद्वोग आदि आदि पर इनकी भावुक टिप्‍पणीयो में मुझे लगातार अराजकता की आहट सुनाई पड रही थी, तमाम बाते ढोल की पोल खोल रही थी दरअसल ये मित्र एक औसत दर्जे के पत्रकार हैं , अर्थाभाव में ज्‍यादा पढ तो नही पाऐ थे पर सुबह का सदुपयोग करते हुऐ अखबार बाटते थे,बिल के साथ विज्ञप्ति भी इकठा करने लगे और जल्‍द ही विज्ञापनो की कमीशन का चस्‍का लग गया,उसे भी बटोरने लगे फिर कमीशन के लिऐ समाचारो का मेनुपुलेशन करके विज्ञापनो को ही शातिराना शब्‍दो से समाचार की शक्‍ल देने लगे, जल्‍द ही अखबार के मालिक के लिऐ धन जुटाने और राजसत्‍ता के विचारधारा को हवा देने के प्रयोग में सफल होकर शहर के ब्‍यूरो प्रमुख हो गऐ तमाम सहूलियते शहर भैयया किस्‍म के लोगो से मिलने लगी, छत के साथ साथ और चार पहियो का भी जुगाड हो गया, मंत्री जी के आर्शिवाद से विदेश यात्रा भी हो गई किसी राजनैतिक व सामाजिक के बजाय मसाज कराने के टूर में , हैसियत ऐसी हैं कि शहर के तमाम बडे प्रतिष्‍ठान ही नही पुलिस विभाग भी समय समय पर इनके लिऐ शरा

! नारी क्यों बेचारी !

! नारी क्यों बेचारी ! उसको नही देखा हमने कभी,पर इसकी जरुरत क्या होगी, ऐ मां तेरी सूरत से भली ,भगवान की सूरत क्या होगी, महिलाओ पर तमाम कसीदे पढनेकी औपचारिकता को इस पंक्ति में समेटते हुऐ मैं सीधे नारी की व्यथा कथा के आकडो पर बात करुगा.... दुनिया के 1.3 अरब लोग नितान्त गरीब हैं इनमे सत्तर प्रतिशत महिलाऐ है,जबकी यही महिलाऐ दुनिया के कामकाज के कुल घण्टो में दो तिहाई घण्टो काम करती हैं,और दुनिया की कुल आय से मिलता हैं इन्हे दसवा हिस्सा..,अमत्र्य सेन के क्षमता और कार्य या फिर हाइजर के आय और व्यय अर्थात विश्व के हर सिध्दांत में यह यह अगर मुनाफे की बात है तो दुनिया इनके जान के पीछे क्यो पडी हैं...! देश में पनपी चन्द सुन्दरियो,टी.वी.पर बडे बडे आलीशान बंगलो चमचमाती कारो के साथ हील वाली सैंडिल खटखटाती बांस सी लम्बी नजरे तरेरती माडलो को या उगलियो में गिनी जा सकने वाली प्रतिप्ठित कंंपनी के सी.इ्र्र.ओ.या फिर कुछऐक राज्यपाल या मंत्री मुख्यमंत्री का महिला होना समूचे भारतीय नारी का प्रतिक मानकर आत्ममुग्धता तो कतई उचित नही, भारत के नक्शे मे केरल एक ऐसा राज्य है जहां निर्धनता होने के बाव