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Showing posts from September, 2015

सोशल मीडिया का संशय .......

सोशल मीडिया का संशय ....... ................... पिछले दिनो कुछ भक्‍तो की लगातार गाली गलौज व धमकी से तंग आकर एन डी टी वी के पत्रकार रविश कुमार ने अपने टिव्‍टर और फेसबुक एकाउण्‍ट ही बंद कर दिया , लगभग इसी समय खबर आती हैं कि जी टी वी के उस पत्रकार को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिल जाती हैं जिसे जिंदल ग्रुप से पेड न्‍यूज के लिऐ एक करोड रूपये मांगने के आरोप में जेल की सजा भी मिल चुकी हैं, खबर ये भी हैं कि व्‍‍हाट शाप,‍ टिव्‍टर और फेसबुक एकाउण्‍ट पर सरकार नजर ही नही रखेगी बल्कि नब्‍बे दिनो तक इनके मैसेज मिटाऐ नही जा सकेगें ,,,,,,,,,, सोशल मीडिया निश्‍चय ही प्रभावी तो हैं फेसबुक ,ट्विटर आदि साइट्स पर सक्रिय जनमानस समाज के ही विभिन्न तबकों ,विचारधाराओं के वे भडासी लोग हैं ही तो हैं, जो समाज और उसकी व्‍यवस्‍‍था पर नजर रखने के साथ साथ उसे टटोलने और कुरेदने का भी प्रयास करते हैं , जो प्रिंट मीडिया के दौर में संपादक के नाम पत्र लिखा करते थे और अपनी योग्‍यता, रूचि के अलावा अपनी देश, समाज के लिऐ कुछ करने की तमाम इच्‍छा एक संपादक की भरोसे सिमट कर रह जाती थी , जिस पर संपादक का सहमत होना जरूरी होता था, अ

खूनी राष्ट्रवाद, हत्यारा धर्म और साम्प्रदायिक संस्था के बीच का लेखक ........

समाज के भीतर सत्ता , धर्म , और राजनीति की बुराइयों को उजागर करने वाला सिर्फ लेखक ही होता है। जिसके विचारों से ही आमजनो में अधिकारबोध और सत्‍ता में दायित्‍व बोध जाग्रत होता हैं , और इसलिऐ   जनता को गुलाम समझने वाली सामंती सत्‍ता लेखक हमेशा खटकता रहता हैं , सच्चा लेखक वही लिखता है जो जनता के पक्ष में लिखा जाना चाहिए। दरअसल अन्‍याय के प्रति आत्‍मबल तो सब में होता हैं पर उसे जाग्रत करने का मार्ग एक कलम द्वारा ही प्रशस्‍त किया जाता हैं , पिछले 30 अगस्‍त साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित एक बुजुर्ग कन्नड़ लेखक माल्‍लेशप्‍पा एम कालबुर्गी की गोली मार कर हत्‍या कर दी गई , क्‍या इसके पीछे वो   साम्राज्यवादी सत्ता नही हो सकती जो क्रान्ति - पथ पर भय का अंधेरा कायम रखना चाहती हैं ...... ?       अफसोस की यह हत्‍या भी समाज में किसी बैचेनी को जन्‍म न दे सकी, तमाम राजनीतिक खेमे के लिऐ प्रतिबद्व लेखक जमात भी बस औपचारिकता का निर्वाह करते हुऐ अपनी अपनी भारतीय मीडिया की तरह   शीना की हत्या, इंद्राणी की ग्‍लेमरस कथा, राधे मां की मतबाली में लगे हैं ,सामना तो यह भी नही कर पा रहे हैं, और इसी बेबसी

मीडिया से तार तार होती हमारी मर्यादाऐ .

      मीडिया से तार तार होती हमारी मर्यादाऐ .............................. इंद्राणी , पीटर , खन्ना , शीना , राहुल के लगातार चल रहे समाचारो से एकाएक सत्‍यक‍‍‍था, मनोहर कहानीयां, रंगीन कहानीया सब याद आ रही हैं, पर अफसोस इन किताबो के दौर में  धर्मयुग, दिनमान पढने वाली वो जमात जो सत्‍यक‍‍‍था किस्‍म्‍ की किताब पढने वालो को डपटती रहती थी वह बेबसी के सा‍थ अब सिमटती जा रही हैं, इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी को जिस तरह से चैनलों और अखबारों में कवरेज मिल रहा है , वो कोई पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इसी तरह के कवरेज को लेकर लंबे लंबे लेख लिखे जा चुके हैं। दरअसल चैनल वाले ये मान चुके हैं कि दर्शको को देश विकास और भष्‍टाचार के समचारो में अंतर ही नही समझ नही आता और न ही नेताओ के वादो इरादो पर भरोसा रहता हैं और वह तमाम मेहनत के बाद टी वी के सामने बैठकर कनफूजियाने के बजाय व‍ह इंद्राणी मुखर्जी की तैरती रंगीन तस्वीरों से आंखें सेंकने और तरह तरह के किस्सों से हाय समाज हाय ज़माना कर बतियाने का मौका छोडना चाहता हैं,पर इन समाचारो का चमत्‍कार देखिऐ की पारिवारिक कल‍ह, व्‍याभिचार और हत्‍या, जिससे लोग समाज