सत्‍ता की मलाई से फिसलती जुबान

स्कूल के दौरान हिन्दीू का एक निबंध बार बार याद आता हैं कि अगर मैं प्रधानमंत्री होता......इसके पीछे हमारे गुरुजनो का यही मनोविज्ञान रहता होगा की हम जनप्रतिनिधियो के आचार विचार रहन सहन के सा‍थ उनकी समाज के प्रति जीवटता ,उत्त र दायित्वव, संवेदना और व्ययवहारिक बोलचाल को न सिर्फ समझे बल्कि जीवन में इसका अनुष्सतरण किया जा सके क्योहकी प्रजातात्रिक देश की राजनीति में जनप्रतिनिधियों का बडा महत्वि होता हैं और ये देश के सयाने माने जाते हैं ,पर तब बड़ी बेशर्मी महसूस होती है जब ये लगता है कि हमने ही बेशर्म और बदजुबान लोगों को भी चुनकर अपना भाग्य निर्माता बना दिया है। संतोष भी होता है तब जब इस तरह के लोगों को जनता भी उनके ही अंदाज में गरियाते हुए खदेड़ देती है। इन सब बातों से यह तो तय है कि चीजें इस तरह नहीं चलेंगी, नहीं चलनी चाहिए। प्रेस को प्रेस्टियूट बताने वाले केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने विवादित बयान दिया है। हरियाणा में दलित बच्चों को जिंदा जलाकर मारे जाने की वारदात पर उन्होंने कहा है कि अगर कोई कुत्ते पर पत्थर मारता है तो इसमें सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती है।इस बीच गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने उत्तर भारतीयों पर निशाना साधा है। रिजिजू ने उत्तर भारतीय लोगों को कानून तोड़ने वाला बताया है। रिजिजू के मुताबिक उत्तर भारतीयों को कानून तोड़ने में मजा आता है और ऐसा करना वो अपनी शान समझते हैं। डसी तरह मंच से चाराचोर कहने पर लालू का अमितशाह को बम्हजपिशाची और तडीपार कहना, क्या हम इन्हेच लोग अपना रोलमाडल मानने को तैयार होगें , भाजपा के वरिष्ठ नेता एव वर्तमान प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कांग्रेस को बुढ़िया कह दिया। प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की तरफ से सवालिया लहजे में इसका जवाब दिया और पत्रकारों से ही पूछा, क्या मैं बुढ़िया लगती हूं? मोदी रूके नहीं। उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, ठीक है। अगर कांग्रेस वालों को बुढ़िया वाली बात पसंद नहीं है तो मैं बुढ़िया नहीं कहूंगा। यह कहूंगा कि कांग्रेस तो गुड़िया की पार्टी है। अब जरा सोचिए। ये बुढ़िया और गुड़िया की बहस से देश का कौन सा भला होना है? एक परिपक्व राजनेता इस तरह की निरर्थक बात क्यों कर रहा है? अजीब सी नौटंकी चल पड़ी है पूरे देश में। इसी तरह भाजपाइयों द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के डमी को संस्कारित करने के लिए उन्हें शिशु मंदिर में दाखिले का नाटक किया गया, उसी चौक पर दूसरे दिन कांग्रेसियों ने बीच चौराहे पर राजनीति की पाठशाला खोल दी। इस पाठशाला में ततकालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के डमी को बदजुबान और मंदबुद्धि करार देते हुए न सिर्फ उन्हें राजनीति की पाठशाला से टीसी देकर स्कूल से निकालने का ड्रामा हुआ, बल्कि गडकरी को मानसिक अस्पताल में दाखिला देने के लिए उनकी मां को सलाह भी दी गई इन नेताओ को इस तरह के बयान/ कारनामों से हासिल क्या होता हैं क्योंक ये इतने बेबाक, निरकुंश और गैरजिम्मे दार होकर बोलते है, देश की व्यवस्था उनकी बपौती नहीं है और डेमोक्रेटिक सिस्टम में इस तरह की बाते की इजाजत नहीं है। फिर इस तरह के बयान का क्या औचित्य है? क्या सिर्फ एक समुदाय विशेष को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए, या राजनीति तानाशाही हूकूमत चलाई जाने का प्रयास हैं इस तरह के बयान और बातों को हतोत्साहित किया जाए, किया जाना चाहिए।, आज रैंप्प पर कम से कम कपडे पहनने वाली माडल के बचे कपडे का भी फिसल जाना और नेताओ की जुबान फिसल जाना एक ही तरह कारनामा हैं, जो बेशक मीडिया के लिऐ मसाला तो हैं ही, हम किन लोगो को सवा सौ करोड आबादी के नीतिनिर्धारण के लिऐ देश की सबसे बडी सयानो के जमात संसद में भेज रहे हैं, विदेश से डिग्री लेकर आऐ, चाल चरित्र और चेहरे की बात करने दल से जुड कर हाथ काटने की बात कहने वाले वरूण गांधी, बडे नेता गडकरी जी जो फिल्मी संवाद की तरह कुत्ते, औरंगजेब की औलाद, गधा, सुअर, हरामी जैसे संबोधन अपने प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेता के प्रति व्यक्त करते हैं। एक बददिमाग कांग्रेसी नेता ने तो मर्यादा की सारी सीमां लांघ दी। उसने कहा, भाजपा को चाहिए कि अटल और आडवाणी जैसे लोगों को अरब सागर में डाल दे। उन्हेंद कौन समझाऐ कि देश उम्र से नहीं अंदाज से चलता है। जबकी इन दो नेताओ ने कभी अपने राजनीतिक विरोधी नेताओं पर अपशब्दों का उपयोग नहीं किया। अटल अलंकारित ढंग से मुद्दे का विरोध करते रहे। उनकी ऐसी विरोधी एवं दमदार बातों की स्वयं जवाहर लाल नेहरू तारीफ करते थे। लाल कृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी विरोध किए जाने वाले विषय पर बहुत ही तर्कसंगत शालीन व सीमित शब्दों में अपनी बात रखते हैं । राजनैतिक लाभ के लिऐ धार्मिक धुव्रीकरण का प्रयोग करने वाले औवेशी, आजमखान, गिरीराज , साध्वीक जैसे लोगो को देश समाज दुनिया गर जानती भी हैं तो सिवाय कैंची सी चलती तेजाबी जूबान के कौशल करिश्मेि के लिऐ,वर्तमान सदर्भो में सत्तामधारी पार्टी के लिऐ क्या ये समझना जरूरी नही होगा कि एक परिपक्व दल का नुमांइदा या राजनेता इस तरह की निरर्थक बात क्यों कर रहा है ? यह सवाल सिर्फ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व जनसंघ की गलियों से संस्कार पा चुके हिंदुत्ववादी विचारधारा वाले जनसंघ पार्टी के बाद अब तीन दशक की आयु वाली भारतीय जनता पार्टी जो अपने आपको संस्कार संपन्न एवं संस्कारित पार्टी के रूप में महिमामंडित व प्रचारित करने वालो से भी इसलिऐ पुछना जरूरी हो जाता हैं,क्योरकी आज यह एक विशाल जनमत के साथ खडी पार्टी हैं, एक बडा जनाधार इसकी देश की दशा दिशा बदलने के लिऐ इसके साथ हैं , यह नीतिगत निर्णयो के लिऐ प्रजातांत्रिक सम्प्न्नए दल हैं फिर इस तरह कि बदजुबानी क्यो और क्योर मुखिया ने बातो पर अंकुश लगाने में असफल हैं ? क्याए ये दलगत रा‍जनीति की आपसी विरोधाभास नही कि जबाबदेह पदाधिकारी निरकुशं और कदाचार की भाषा प्रयोग कर रहे हैं ? क्याल अपनी विफलताओ से ध्यािन हटाऐ रखने का सुनियोजित प्रयोग ? क्या् राजनीति को मंच के सामने हर ताली बजाने वालों की एक भीड़ भेंड़-बकड़ी नजर आती हैं ? क्याि मतदाता जनप्रतिनिधियो के बिगडे बोल के प्रति नकारात्मकक रुख अपनाते हुऐ इन्हेंभ राजनीति से बाहर का रास्ताै दिखाते हुऐ चुनाव में प्रजातांत्रिक सबसे बडा हथियार का प्रयोग करते हुऐ बिगडे बोल के लोगों को खदेड देना चाहिये और प्रगतिशील सोच वाला कोई प्रतिनिधि चुनें ताकि एक बेहतर भविष्य की उम्मीद तो बने बजाय सत्तास की मलाई से फिसलती जुबान के ...................... ? सतीश कुमार चौहान

Comments

Popular posts from this blog

इमोशनल अत्‍याचार

अन्ना का अतिवाद

करोना का बाजार .