सत्ता की मलाई से फिसलती जुबान
स्कूल के दौरान हिन्दीू का एक निबंध बार बार याद आता हैं कि अगर मैं प्रधानमंत्री होता......इसके पीछे हमारे गुरुजनो का यही मनोविज्ञान रहता होगा की हम जनप्रतिनिधियो के आचार विचार रहन सहन के साथ उनकी समाज के प्रति जीवटता ,उत्त र दायित्वव, संवेदना और व्ययवहारिक बोलचाल को न सिर्फ समझे बल्कि जीवन में इसका अनुष्सतरण किया जा सके क्योहकी प्रजातात्रिक देश की राजनीति में जनप्रतिनिधियों का बडा महत्वि होता हैं और ये देश के सयाने माने जाते हैं ,पर तब बड़ी बेशर्मी महसूस होती है जब ये लगता है कि हमने ही बेशर्म और बदजुबान लोगों को भी चुनकर अपना भाग्य निर्माता बना दिया है। संतोष भी होता है तब जब इस तरह के लोगों को जनता भी उनके ही अंदाज में गरियाते हुए खदेड़ देती है। इन सब बातों से यह तो तय है कि चीजें इस तरह नहीं चलेंगी, नहीं चलनी चाहिए। प्रेस को प्रेस्टियूट बताने वाले केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने विवादित बयान दिया है। हरियाणा में दलित बच्चों को जिंदा जलाकर मारे जाने की वारदात पर उन्होंने कहा है कि अगर कोई कुत्ते पर पत्थर मारता है तो इसमें सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती है।इस बीच गृह राज्य मंत्री किर