सुशासन ........
आज के हमारे गौरवशाली प्रजातंत्र के लिऐ जैसा मनोविज्ञान हमारा आपका और देश के पेशेवर राजनैतिक सयानो का बन रहा हैं उस पर कुछ भी कहने से शर्मिन्दगी महसूस होती हैं, निसन्देह हम अवसर व उपभोक्तावाद की चपेट में दिग्भ्रमित हुऐ हैं पर नीतिनिर्धारको को अब सचेत होना ही पडेगा, जिसके लिऐ किसी दिशानिर्देश व ज्ञान की जरूरत नही, हमें तो इतिहास ने ही इतने सरल और सुनियोजित आर्दश और मर्यादित संविधान के साथ उसके सुखद उदहारण दिये हैं जिससे सुशासन हो सकता हैं पर हमने नैतिकता तो दूर अपने ही मानवीय अभिव्यक्ति और आत्मसम्मान को भी तार तार कर भविष्य के लिऐ एक ऐसा सांचा रच डाला की व्यवस्था की बनावट ही प्रजातंत्र में कही फीट नही बैठ पा रही हैं........ चेन्नई से ८३ किलोमीटर की दूरी पर चेंगलपेट के पास एक कस्बा है “ उतीरामेरूर ” और आबादी लगभग २३०००. सन ८८० के दशक यह में चोल वॅशी राजा परंतगा सुंदरा चोल के आधीन था.वहां राजाओं के जमाने में भी ग्राम प्रशासन में प्रजातंत्र की व्यवस्था थी , कस्बा के बस अड्डे के पास ही एक शिव मंदिर है. उसकी दीवारों पर चारों तरफ हमारे संविधान की धाराओं की तरह ग्राम प्रशासन