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आम आदमी .................. पडोसी दादाजी महंगाई की बात करते हूऐ कहते हैं कि  जब मैं जवान थे तो बाल संवारने सजाने के लिऐ नाई को शौ‍क से 5 रुपया देता था । कुछ साल बाद आफिस क्‍लास बने रहने के लिऐ 20   रुपये देने लगा । लेकिन अब जब मेरे बाल लगभग गायब हो गए हैं और खुद भी रिटायर हूं तो 50 देने पड र‍हे हैं फिर भी उसकी शिकायत बनी ही र‍हती हैं की महंगाई बढ गई हैं , दरअसल समय समय पर बुनिया‍दी आवश्‍यकताओ की छोटी छोटी बढोतरी मीडिया और राजनैतिक बयानबाजी हमें झकझोरती भर है , मसलन व्‍यापक आधार के सा‍‍थ पैट्रोल और सब्‍जी के दाम बढने को लेकर कोसने के लिऐ हमारे पास सरकार नाम का ही एक विकल्‍प हैं , जब‍की विरोधाभाषी जीवन शैली और विसंगतियो से हम लापरवाह और अन्‍जान हैं  जो हमारे बजट का एक बड़ा हिस्सा खा रहा है। पिछले कुछ सालों में सभी लोगों , खासकर मिडल इन्कम ग्रुप को मिलने वाली सुविधाओं की बाढ़ सी आ गई हैं दरअसल आमदनी का बड़ा हिस्सा चार चीजों पर खर्च होता है। पहला बच्‍चो की पढाई , दूसरा लोन , तीसरा ट्रांसपोर्ट पर और चौ‍‍था इलेक्‍ट्रानिक ,  चिन्‍तन यहां से शुरू होता हैं कि बच्‍चो की पढाई जो रोजगा