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Showing posts from October 17, 2015

सत्‍ता, संगठन और संस्‍‍था से जूझता साहित्‍यकार ...........

साहित्य   अकादमी अवार्ड, सर्वोच्च साहित्य स म्मान है, जो लेखनी के धनी व्यक्ति को भारत सरकार द्वारा शिला पटट के साथ एक लाख रुपये दे कर स म्मानित किया जाता हैं ... साहित्‍य को कविता / कहानी में देखने वाले कुछ लोग सहित शब्द को ताक में रखकर साहित्‍य में अपनी सुविधानुसार विचारवस्‍तु को टटोल रहे हैं, और इसी वजह से साहित्‍य में समाहित सहित, अपने आचरण के ठीक विपरीत विभाजन की बात करता प्रतीत हो रहा हैं ,निश्‍चय ही हम प्रेमी हैं तो ईष्‍यालु भी हैं, जिम्मेदार तो लापरवाह भी. क्षेत्रीय हैं तो राष्ट्रीय भी, य‍‍थायोग अपने बदलते भाव से साहित्य के माध्यम से हमारा मानव मन , समाज-देश एवं संबंधों की जटिलताओं को भी सटीकता से व्यक्त कर सकता हैं ,यह  इतना आसान नहीं होता. साहित्य इस प्रक्रिया को सुगम्य बनाता है. परस्पर विरोधी भावनाओं को उकेरते हुऐ समय एवं स्थान की मर्यादा सुरक्षित कर जटिलताओं को धारावाह रूप से पाठक के समक्ष शिद्दत से पेश करने का काम केवल साहित्य कर सकता हैं. नायक नायिका और प्रकृति के अलावा भी  समाज के प्रति संवेदना,सजगता, समरसता और सर्तकता में ही साहित्‍य की सफलता के बा‍वजूद साहित्य