गंगा तू बुलाती ही क्यों हैं ........... ? गंगा में नहाने के लिए लाखों लाख लोग आते हैं , मान्यता हैं कि गंगा में इुबकी लगाऐ बिना तो स्वर्ग में प्रवेश ही नही मिलेगा हैं, यहां अमीर गरीब का भी अनोखा मनोविज्ञान काम करता हैं, एक तबका अपने स्तर पर तो बडे शान शौकत से रहता हैं गली मोहल्लो के नाली नालो को देखते ही नाक सिकोड लेता हैं रूमाल से शक्ल छुपा लेता हैं पर गंगा के पास आते ही ये जानते हुऐ भी की पुरा किया धरा मल मुर्दा मटेरियल इसी गंगा में हैं, फिर भी बडे उत्साह के साथ एक नही सात सात बार डुबकी लगाते हुऐ यह मान लेते है कि तमाम पाप बसा धुल ही गऐ , इसी तरह अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से कमजोर नाली नालो के किनारे गली बस्ती में रहने वाले भी उसी उत्साह और आस्था से डुबकी लगा कर महसूस करते है की उसने तो पुण्य पा ही लिया, बडी श्रद्वा से बोतल में भर कर घर ले जाते हैं और पुरे घर में छिटक छिटक कर महसूस करते है कि पतित पावन गंगा घर आ गई , चन्नार्मत में भी घोल घोल कर पीते हैं जबकी इसी पहले वर्ग के लोगो ने पाप खुद को तो धौया ही साथ ही तमाम अपनी व्यवसायिक गंदगी को भी इसी गंगा में बहा कर तिजो
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