साहित्यकार- पुछा जाऐ तो अकड जाते हैं न पुछा जाऐ तो बिगड जाते हैं,
गर्व और ग्लानि की आधार भूमि पर हर आयोजन की अपनी व्यवस्था और सीमाऐ होती है, जो उसके उत्साह, उल्लास और सफलता के लिऐ सुनिश्चत की जाती हैं, रायपुर में आयोजित साहित्य महोत्सव कार्यक्रम से निश्चय ही प्रदेश की आबोहवा में रचनात्मक महक तो फैली ही हैं, इसके लिऐ आयोजक मंडल धन्यवाद का पात्र हैं, साहित्य को लेकर इस मनोविज्ञान को आज के संदर्भ में कतई नकारा नही जा सकता की साहित्यकार को पुछा जाऐ तो अकड जाते हैं न पुछा जाऐ तो बिगड जाते हैं, लेखकों को बुलाने या नहीं बुलाने और बुलाने पर जाने या नहीं जाने की पीछे बहुत सारे तर्क हो सकते हैं , मैं यकीनन कह सकता हूं कि पारस्परिक संबंधो की गुजाइंश के साथ व्यक्तिगत और संगठन के रूप में किसे बुलाया जाऐ किसे न बुलाया जाय का निर्णय कतर्ड आयोजक के मौलिक अधिकार नही हो सकता जब आयोजन सरकारी खजाने से हो, कयोकी यह पैसा हर एक नागरिक का हैं, किसने किस को बुलाया और कौन गया नहीं गया, किस आधार आना जाना हुआ कितना राजनैतिक और आर्थिक तडका लगा, ये नैतिक सवाल हैं जो कभी भी रणनिति का रूप ले सकता हैं, जानेवाले को क्या और किस तर्क से मिला, योग्यता से कितना तालमेल थ