लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी
पिछले दि नो एक लोकतंत्र तथाकथित प्रहरी के साथ बैठक हो गई , समाज, व्यवस्था, राजनीति, प्रशासन,शिक्षा, चिकित्सा,व्यापार,उद्वोग आदि आदि पर इनकी भावुक टिप्पणीयो में मुझे लगातार अराजकता की आहट सुनाई पड रही थी, तमाम बाते ढोल की पोल खोल रही थी दरअसल ये मित्र एक औसत दर्जे के पत्रकार हैं , अर्थाभाव में ज्यादा पढ तो नही पाऐ थे पर सुबह का सदुपयोग करते हुऐ अखबार बाटते थे,बिल के साथ विज्ञप्ति भी इकठा करने लगे और जल्द ही विज्ञापनो की कमीशन का चस्का लग गया,उसे भी बटोरने लगे फिर कमीशन के लिऐ समाचारो का मेनुपुलेशन करके विज्ञापनो को ही शातिराना शब्दो से समाचार की शक्ल देने लगे, जल्द ही अखबार के मालिक के लिऐ धन जुटाने और राजसत्ता के विचारधारा को हवा देने के प्रयोग में सफल होकर शहर के ब्यूरो प्रमुख हो गऐ तमाम सहूलियते शहर भैयया किस्म के लोगो से मिलने लगी, छत के साथ साथ और चार पहियो का भी जुगाड हो गया, मंत्री जी के आर्शिवाद से सरकारी खर्च पर विदेश यात्रा भी हो गई किसी राजनैतिक व सामाजिक के बजाय मसाज कराने के टूर में , हैसियत ऐसी हैं कि शहर के तमाम बडे प्रतिष्ठान ही नही पुलिस विभाग भी समय समय