खूनी राष्ट्रवाद, हत्यारा धर्म और साम्प्रदायिक संस्था के बीच का लेखक ........
समाज के भीतर सत्ता , धर्म , और राजनीति की बुराइयों को उजागर करने वाला सिर्फ लेखक ही होता है। जिसके विचारों से ही आमजनो में अधिकारबोध और सत्ता में दायित्व बोध जाग्रत होता हैं , और इसलिऐ जनता को गुलाम समझने वाली सामंती सत्ता लेखक हमेशा खटकता रहता हैं , सच्चा लेखक वही लिखता है जो जनता के पक्ष में लिखा जाना चाहिए। दरअसल अन्याय के प्रति आत्मबल तो सब में होता हैं पर उसे जाग्रत करने का मार्ग एक कलम द्वारा ही प्रशस्त किया जाता हैं , पिछले 30 अगस्त साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित एक बुजुर्ग कन्नड़ लेखक माल्लेशप्पा एम कालबुर्गी की गोली मार कर हत्या कर दी गई , क्या इसके पीछे वो साम्राज्यवादी सत्ता नही हो सकती जो क्रान्ति - पथ पर भय का अंधेरा कायम रखना चाहती हैं ...... ? अफसोस की यह हत्या भी समाज में किसी बैचेनी को जन्म न दे सकी, तमाम राजनीतिक खेमे के लिऐ प्रतिबद्व लेखक जमात भी बस औपचारिकता का निर्वाह करते हुऐ अपनी अपनी भारतीय मीडिया की तरह शीना की हत्या, इंद्राणी की ग्लेमरस कथा, राधे मां की मतबाली में लगे हैं ,सामना तो यह भी नही कर पा रहे हैं, और इसी बेबसी