सुरक्षा -किस की और कितनी …..?
लैड माइंस ब्लास्ट……..हर बार की तरह वैसे ही खून से लथपथ कभी आदीवासी, कभी पुलिस, कभी सूदूर जंगलो मे रहने वाले ग्रामीणो की लाश.और अब कुछ नेता किस्म के लोग भी.। मौतों में अपने परिजनो को खोजते-भटकते या फिर चिथडो से लिपट के रोते लोग, हर बार की तरह वैसे ही मीडिया के लोगो की टी आर पी बढाती ब्रैकिंग न्यू ज, कैमरे के साथ भागता रिर्पोटर मुंह लटकाऐ मंत्री संत्री पक्ष विपक्ष् गले के बजाय पेट से निकलते घोर निन्दाू बयान गुनाहगारों को सजा देने के वैसे ही वायदे , कायराना हरकत की फिलासिफी की बात कर खाली हाथ दिखाने की सरकारी फितरत पत्तोस को फूल बनाकर श्रद्वासुमन की रस्म अदायगी फिर नगर निगम के कचरो वाहनो से शहीद की डब्बा बंद होम डिलवरी ,
और कल को प्रोग्राम कहां कहां उद्रघाटन करना हैं , कहां क्याह भाषण पढना क्याो घोषणा करनी हैं कितने लोग जुटेगे, कहां पुतला जलवाना हैं कहां कहां बंद करवाना हें कौन रात केा मीडिया के साथ बैठ समाचार को को अपने पक्ष में सेट करेगा , संगठन को मजबूत कैसे किया जाऐ कौन कौन सी लोकलुभानी योजनाऐ तैयार हैं जिससे वोट बैंक बढेगा, विपक्ष से कैसे निपटना हैं आला कमान और राज्येपाल से राज्यक सरकार की शिकायत करनी हैं, राज्य में भय भुख भष्टाैचार को बोलबाला हैं,दिल्लील जाने का प्रोग्राम बनाऐ प्रदेश के लिऐ योजनाऐ और राहत पैकेज लाने हैं प्रेस कांफ्रेस बुलाओ केन्द्रट, राज्यह के साथ सौतेला व्यजवहार कर रहा हैं ......कितने व्य स्तप तो हैं हमारे प्रदेश के ये सयाने कहां याद रहता हैं उस एक डब्बा बंद पार्सल का जिसे अनाथ हो गया बेटा, सिन्दूेर उजाड चुकी सुहागिन का लिपट लिपट का रो रहे हैं , मां तो खैर...........बेचारा बाप अभी तो अंतिम संस्कानर का ही जुगाड कर लें फिर नहावन तेहरवी का खर्च अलग, सरकार कहती हैं देगी पर उसमें भी पहले कुछ लेना देना................................. बंद करो.... टी वी, ये तो रोज का ही हैं मनोवैज्ञानिक कहते हैं बच्चो पर ऐसे समाचारो से गलत असर पडता हैं सास बहू और साजिश का टाइम भी हो गया हैं, आज फिर अखबार के बैनर ही ने चाय का टेस्टह बिगाड दिया खून खराबे के समाचार, हमें भी तो दिनभर की जद्रदोजहद में इसी तनाव से जीना हैं , सडक पर वाहनो की रफतार से बचना हैं, व्य साय में कभी भी नुकसान हो सकता हैं ,बच्चोा के फीस, बिजली का बिल गैस पैट्रोल राशन का दाम सब बढ गऐ , छत चू रही हैं आगे ठंड के लिऐ गरम कपडे भी लेने हैं, मां की खांसी कितनी मंहगी हैं दवा, डाक्ट र तो अपने कमरे मे लगे ए सी की भी पुरी वसूली हमसे ही कर रहा हैं,किससे अचाऐ वेचारी इस जान को्.................. लो फिर ये लम्बाभ जाम मत्री जी का काफिला गुजरने वाला हैं ढोल भी बज रहा हैं लम्बीा लडी भी सडक के बीच पसरी हैं दस मिनट तो फडफडाऐगी ही सडक पर चापलूसीयो द्वारा शक्ति प्रर्दशन भी होना ही हैं, लगता हैं पुरे शहर की पुलिस यही तैनात हैं सायरन की आवाज आ रही हैं फिर भी घंटा भर तो लगेगा पचीस पचास गाडीया तो होगी ही........निश्चनय ही सुरक्षा और सर्तकता लो जरूरी ही हैं....पर किस किस की और कितनी ………..?
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