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Showing posts from May, 2011

मिनटो में एक जगह पर परस्‍पर तीन विरोधी दलो का एक दिनी जंगी प्रर्दशन ......

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हमारे आफिस के सामने चौराहे पर एक सामन्य सा पान ठेला था, वही तकनीक से बना जिसमे नीचे गोदाम साथ साथ पनवाडी के लिऐ खडे होने की जगह मदारी के सामने डबबा जैसे एक लम्बाा लाल कपडे से ढका फ्रिज के काम सा डब्बाग जिसमे पान का समान रखा जाता उपर से चुन्निटदार झालर वालारंगीन कपडे का कवर, रात के लिऐ हरी टयूब्‍ लाइट, बडा साउण्डस बाक्सन जिसमे दादा कोउके स्टा इल के गाने चलते रहते हैं, देश दुनिया की खबर,चर्चा, हर वर्ग जाति,व्येवसाय के लोगो का मिलन कुल मिलाकर रंगीला व्यरवसाय और रंगीन मिजाज पनवाडी, व्यनस्तरम चौराहा होने की वजह से यहां आऐ दिन राजनैतिक गैर राजनैतिक धरना प्रदर्शन इसी पान ठेले के सामने होते रहते हैं, वही एक ही तरह का टेंट गददे ,माइक्‍, पुलिस के लिऐ दो चार कुर्सी का इन्त जाम, एक ही किस्म के झण्डेे बस रंग अलग, एक ही किस्मे के लोग बस शक्लेस अलग,रोज भीड जुटती पान गुटका और सिगरेट बिकते, धीरे धीरे पानी पाउच फिर कोल्डत ड्रिंक भी बिकने लगा, पनवाडी पक्काी व्यासपारी था उसने रोज रोज के धरना प्रदर्शन के लिऐ पुरा ताम झाम ही खरीद लिया, जिसमे टेंट गददे ,माइक्‍ के अलावा जलाने के लिऐ पुतले, नारे बाजी के लि

सुशासन ........

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आज के हमारे गौरवशाली प्रजातंत्र के लिऐ जैसा मनोविज्ञान हमारा आपका और देश के पेशेवर राजनैतिक सयानो का बन रहा हैं उस पर कुछ भी कहने से शर्मिन्‍दगी महसूस होती हैं, निसन्‍देह हम अवसर व उपभोक्‍तावाद की चपेट में दिग्‍भ्रमित हुऐ हैं पर नीतिनिर्धारको को अब सचेत होना ही पडेगा, जिसके लिऐ किसी दिशानिर्देश व ज्ञान की जरूरत नही, हमें तो इतिहास ने ही इतने सरल और सुनियोजित आर्दश और मर्यादित संविधान के साथ उसके सुखद उदहारण दिये हैं जिससे सुशासन हो सकता हैं  पर हमने नैतिकता तो दूर अपने ही मानवीय अभिव्‍यक्ति और आत्‍मसम्‍मान को भी तार तार कर भविष्‍य के लिऐ एक ऐसा सांचा रच डाला की व्‍यवस्‍था की बनावट ही प्रजातंत्र में कही फीट नही बैठ पा रही हैं........   चेन्नई से ८३ किलोमीटर की दूरी पर चेंगलपेट के पास एक कस्बा है “ उतीरामेरूर ” और आबादी लगभग २३०००. सन ८८० के दशक यह में चोल वॅशी राजा परंतगा सुंदरा चोल के आधीन था.वहां राजाओं के जमाने में भी ग्राम प्रशासन में प्रजातंत्र की व्‍यवस्‍था थी , कस्बा के बस अड्डे के पास ही एक शिव मंदिर है. उसकी दीवारों पर चारों तरफ हमारे संविधान की धाराओं की तरह ग्राम प्रशासन

जेब साथ न दे तो अन्ना् ........

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लोकपाल बिल के नाम पर हुई मुहिम से कुछ हो ना हो पर इस की परिभाषा पर चिन्तनन तो जरूर हो रहा हैं और हर कोई अपनी कमीज को झक सफेद कह कर दूसरे में दाग खोज रहा, कुछ महाभष्टाैचारी तो हजारे फैन क्लेब भी बना रहे हैं दरअसल मीडियापरस्त लोगो के लिेऐ अपनी पहचान को मान्यहता देने के लिऐ अन्ना एक सरल माध्यम बन गया हैं, अन्नाो के साथ के लोगो पर जो कुछ कहा जा रहा हैं वह तथ्योन से अलग नही हैं, जाहिर सी बात हैं कि अन्ना टीम का सदस्यस बन कर कोई अपने को पाक साफ नही कह सकता ,ये अलग बात हैं की इस टीम पर उगली उठाने से पहले हर कोई अपनी करतूतो से बचने का साहस नही जुटा पा रहा हैं, जन्तउर मन्ततर की भीड ये जरूर कह रही थी कि भष्टाेचार हैं, पर कोई एक्‍ भी अपने को भष्टािचारी बताने का साहस न जुटा सका और यही हाल हजारे कंपनी का था वह भी किसी एक को भी भष्टानचारी कहने का साहस न दिखा सकी, फिर ये सवाल साफ है कि कौन हैं जिसके खिलाफ से रस्माअदायगी हो रही हैं, सब्जीत वाले से कांटा अपने तरफ झुका कर खरीदारी करने व समय और ओहदे की बात कह कर शार्टकट और सुविधाशुल्कअ जैसे रास्तोक से काम निकालने वाले क्या अपेक्षाकंत कमजोर लोगो के लिऐ भष