सर आप तो आप ही हैं .....

भाजपाइयों द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के डमी को संस्कारित करने के लिए उन्हें शिशु मंदिर में दाखिले का नाटक किया गया, उसी चौक पर दूसरे दिन कांग्रेसियों ने बीच चौराहे पर राजनीति की पाठशाला खोल दी। इस पाठशाला में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के डमी को बदजुबान और मंदबुद्धि करार देते हुए न सिर्फ उन्हें राजनीति की पाठशाला से टीसी देकर स्कूल से निकालने का ड्रामा हुआ, बल्कि गडकरी को मानसिक अस्पताल में दाखिला देने के लिए उनकी मां को सलाह भी दी गई। साठ के दशक में बनी एक फिल्म के सीन में जवान निकम्मेा बेटे ने माता पिता को यह कहा था कि पैदा करने में तो मजा आया अब खिलाने में क्योि जान निकल रही हैं, समाज को यह डायलाग काफी नागवार गुजरा था काफी हो हल्लाा हुआ था,फिल्मो निर्माता ने क्षमा मांगते हुऐ यह सीन फिल्मम से हटा दिया था,

आज हम रैंप्पह पर कम से कम कपडे पहनने वाली माडल के बचे कपडेा का भी फिसल जाना और नेताओ की जुबान फिसल जाना एक ही तरह कारनामा हैं, जो बेशक मीडिया के लिऐ मसाला तो हैं पर इन घटनाओ के देख / सुन कर बडी बेशर्मी महसूस होती है, हम किन लोगो को सवा सौ करोड आबादी के नीतिनिर्धारण के लिऐ देश की सबसे बडी सयानो के जमात संसद में भेज रहे हैं, विदेश से डिग्री लेकर आऐ, चाल चरित्र और चेहरे की बात करने दल से जुड कर हाथ काटने की बात कहने वाले वरूण गांधी, इनकी ही पार्टी के मुखिया गडकरी जी जो फिल्मी संवाद की तरह कुत्ते, औरंगजेब की औलाद, गधा, सुअर, हरामी जैसे संबोधन अपने प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेता के प्रति व्यक्त करते हैं। गुजरात के मुख्यगमंत्री जी तो कांग्रेस को बुढ़िया बता चुके थे, पर प्रियंका गांधी ने सवालिया लहजे में इसका जवाब दिया, क्या मैं बुढ़िया लगती हूं ? तो मोदी जी अपने शातिराना अंदाज में बुढ़िया को गुडिया में बदल गऐ। और रोलर के नीचे कुचलने की बात करने वाले लालू को यह सोचना ही होगा कि देश उनके तौर तरीके से नहीं चलेगा। एक और बददिमाग कांग्रेसी नेता इस चर्चा में अमर्यादित होकर अटल और आडवाणी जैसे लोगों को अरब सागर में डालने की भाजपा को सलाह दे डाली कि । जबकी इन दो नेताओ ने कभी अपने राजनीतिक विरोधी नेताओं पर अपशब्दों का उपयोग नहीं किया। अटल अलंकारित ढंग से मुद्दे का विरोध करते रहे। उनकी ऐसी विरोधी एवं दमदार बातों की स्वयं जवाहर लाल नेहरू तारीफ करते थे। लाल कृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी विरोध किए जाने वाले विषय पर बहुत ही तर्कसंगत शालीन व सीमित शब्दों में अपनी बात रखते हैं । राजनैतिक लाभ के लिऐ धार्मिक धुव्रीकरण का प्रयोग करने वाले नरेन्दल मोदी और जवान वरूण गांधी को समझना होगा कि अटलजी की शालीनता के चलते उ.प्र. के लखनऊ में मुस्लिम वोट देकर उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुनते रहे।

एक परिपक्व दल का नुमांइदा या राजनेता इस तरह की निरर्थक बात क्यों कर रहा है ? यह सवाल सिर्फ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व जनसंघ की गलियों से संस्कार पा चुके हिंदुत्ववादी विचारधारा वाले जनसंघ पार्टी के बाद अब तीन दशक की आयु वाली भारतीय जनता पार्टी जो अपने आपको संस्कार संपन्न एवं संस्कारित पार्टी के रूप में महिमामंडित व प्रचारित करने वालो से ही नही, साठ साल की काग्रेस व राजनीति के कलाबाज लालू सरिखे नेताओ से भी हैं, क्याा राजनीति के लिऐ अपना मस्तिष्क व जुबान पर नियंत्राण खोकर पागलपन के साथ गंदे, भद्दे अपशब्दों का उपयोग यह नही साबित करता कि मुद्दे पर आकर विषय का तर्कसंगत विरोध करने या विरोध में सही वाक्य कहने की पौरूषता का अभाव ही इस तरह का कुतर्क करने को मजबूर कर रहा हैं, यह सवाल हम सब से भी हैं कि क्यों कुछ बेशर्म और बदजुबान लोगों में से किसी को चुनकर हम अपना भाग्य निर्माता बनाने की गलती बार बार कर रहैं है।

विषयांतर होकर विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं पर अपशब्द बोल रहे हैं। यही असंसदीय संबोधन मीडिया के लिऐ के लिऐ खुराक का काम करता हैं, मीडिया की सुई पुरे दिन के लिऐ इन रिकार्डो पर अटक जाती हैं, और अपने व्या भिचारिक शाब्दिक चमत्काहरो की कुत्ता नोंच से इस तरह के लोग समाज पर लाद कर अपना कारोबार चौतरफा बढा रही हैं, और इसके ही त्व रित उदाहरण हैं गडकरी, लालू, दिग्विजय, वरूण और नरेन्द मोदी जैसे सैकडो नेता जो देश में हुनर नही बदजुबान की वजह से जाने जाते हैं ............

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बढ़िया विष्लेषण है ।

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