
पिछले दिनो बाजार से देख समझ कर लेने के बावजूद घर पर
पहुचते ही श्रीमति ने अंगूर में खांमीया निकाल दी दरअसल हमने खरीदे तो कैप्सूल
आकार के थे , पर घर पर प्लास्टिक खोलकर देखने पर कुछ तो मनमाफिक थे बाकी छोटे
छोटे गंदे सडे दाने, अपनी इस करतूत पर हमें विश्वास नही हो रहा था और फल वाले की
बाजीगरी गले नही उतर रही थी, हम दूसरे दिन फिर वही पहुंचें और मासूम फल वाले की
बाजीगरी के आड में चल रहा बाजार का शातिर कारोबार देखकर दंग रह गऐ दरअसल वह काले
रंग की प्लास्टिक में पहले ही छोटे गंदे सडे दाने, डाल कर रखता था फिर उसी में
हमारी आपकी पंसद के कुछ अंगूर डाल के टिका देता था, इसी तरह ऐ बार हमारे परीचित
आम वाले ने तमाम आम सजा कर रखने के बाद भी देने से यह कह कर इन्कार कर दिया की बापकी
लायक नही हैं केमिकल से पकाये गऐ हैं, जबकी चह बेच रहा था, खैर ये तो सच हैं कि व्यवसाय
पांच् की चीज को छ में बेचना नही रहा अब बाजार अब पांच से पचास करने का नाम हो
गया हैं, फिर ये तो धंधा हैं भाई बात, दर्जन भर केले / अण्डे घर पर ग्यारह हो
जाते हैं,किलो का तीन पाव, मूंगफली के पेस्ट से काजू बन जाना डोरा की अण्डरवियर
कर डारा बन जाना, फैयर एण्ड लवली का फ्रेस् एण्ड लवली, लाइफबाय का लाइफबाडी,ये
तो बाजार की महत्वकांक्षा में ही तानाशाही का नमूना हैं, भीण्डी , करेला, परवल
पर हरा रंग, तरबूज अनार में लाल रंग, पपीता आम में पीला रंग, बैंगन में नीला,लीची
पर गुलाबी आम बात हैं जो बाजार से घर जाते
जाते थैले को ही अपना असर दिखा देता हैं , इसी तरह गन्ने
,आम, केले अंगूर जैसे फलो को कार्ब्रोनेट से पका कर सेकरीन में डुबा कर बेचा जा
रहा हैं, कई बार हम इस खुशफहमी के शिकार हो जाते हैं कि बेमौसम में फल् और सब्जी
खाने खिलाने का गौरव मिल रहा हैं, पर स्वाद ..,पिछले दिनो शहर के बडे शांपिग माल
का विज्ञापन आया कि जर्मन के आयातित सेव सौ रूपये किलो विथ् गिफट पेकिंग, निश्चय
ही काफी आकर्षक पेकिंग तो थी पर स्वाद __ सब सत्यानाश, करेला मैथी
खा कर लोग महसूस करते थे कि ग्लुकोश लेबल कम होता हैं बेचारे मधुमेह के रोगी इस
आस में तमाम सब्जी को छोड इसे ही खते रहते थे , पर अब प्रयोग बता रहे हैं कि रसायनिक
खाद की वजह से अब ये भी बेमानी हो गया हैं , आक्सीटोसिन इंजेक्शन के असर से ही
बैगन, लोकी, पपीता का आकार समझ आ जाता हैं , थैले से ही हरी धनिया मैथी अपनी खूश्बू
पुरे मोहल्ले को बता देती थी, अब बाजार
में टनो में भी रहकर तलाश करनी पडती हैं,
दरअसल सब्जी मंडी भी कारर्पोरैट बाजार की की चपेट में आ
गया है, इस में वही दंबगई आ गयी हैं जो शराब और खदानो के कारोबार के समान ही इस
कारोबार को बाडी वालो के हाथो से हथियाया जा चुका हैं ,जिनको राजनीति की और राजनीति
को जिनकी जरूरत बनी रहती है, ये निर्धारित करते हैं कि बाजार में कब, किस हाल में, कैसी और कितनी फल या सब्जी पहूचेगी
और किस दाम पर बिकेंगी, भोर सुबह आस पास के छोटी बाडी वाले किसान कुछ ताजी सब्जी
बेच जाते थे, उनको भी चमकी धमकी देकर इन्होनें अपने कब्जे में ले लिया;सरकार के
पास कानून तो उल्टे पैर में जूता न पहने इस का भी हैं पर दरोगा राज में सब चल रहा
हैं, अपनी बाडी विकसित कर के ही कुछ राहत पाई जा सकती हैं कुल मिला कर ताजी और सही सब्जी या फल भी नसीब
में नही रहा, सच ही कहा हैं
अपनी छतरी तुमको दे दे जब कभी बरसे पानी,
कभी नऐ पाकेट में दे
दें तुमको चीज पुरानी....
दिल हैं हिन्दुस्तानी
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